20100324

सुलझाई पहेली, ठुकराया 1 मिलियन डॉलर का इनाम

पीटर्सबर्ग. रूस के एक 'गरीब' गणितज्ञ व संभवतः दुनिया के सबसे तेज दिमाग व्यक्ति ने विश्व की जटिलतम गणित पहेली को सुलझाने के बाद भी एक मिलियन डॉलर की रकम को ठुकरा दिया।द मेल पर छपी एक खबर के मुताबिक दुनिया का यह सबसे तेज जीनियस पिटर्सबर्ग में एक बेहद सामान्य फ्लैट में रहता है। यहां तक कि उसके फ्लेट में कॉकरोच की भरमार है।

जब डॉ. ग्रिगोरी पेरेलेमेन को उनके द्वारा गणितज्ञों के सामने पिछले सौ सालों से सबसे बड़ी चुनौती बनी पॉइनकेयर कंजेक्चर को सुलझाने पर मिलने वाली भारी-भरकम रकम के बारे में बताया गया तो उन्होंने कहा कि उनके पास वो सब है, जो वे चाहते हैं।

डॉ. ग्रिगोरी ने इस जटिल गणित पहेली को सुलझानें में सफलता प्राप्त की थी. 44 वर्षीय डॉ. ग्रिगोरी को क्लेय मैथमेटिक्स इंस्टीट्यूट इन कैंब्रिज, मैसाचुसैट्स ने पिछले हफ्ते एक मिलियन डॉलर के इनाम का विजेता घोषित किया था।चार साल पहले इस समस्या को सुलझाने और इसका जवाब इंटरनेट पर डालने के बाद वो इंटरनेशनल मैथमेटिक्ल यूनियन द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित फील्ड मेडल लेने के लिए भी नहीं पहुंचे थे. उस समय उन्होंने कहा था कि वो ना दौलत चाहते हैं और ना शोहरत। वो किसी चिड़ियाघर में बंद जानवर की तरह देखने का सामान नही बनना चाहते। मैं गणित का कोई हीरो नही हूं और न ही मैं इतना कामयाब हूं, इसलिए मैं चाहता हूं कि सब मेरी तरफ न देखें.

उनकी एक पड़ोसी ने बताया कि एक बार वो उनके घर में गई थी और यह देखकर दंग रह गई थी की उनके प्लैट में सिर्फ एक मेज, स्टूल और बेड ही था। बेड पर भी गंदी चादर बिछी हुई थी। यह चादर भी इस मकान का मालिक छोड़ गया था। डॉ. ग्रिगोरी की यह पड़ोसन कहती है कि हम अपने बिल्डिंग ब्लाक से कॉकरोच से छुटकारा पाना चाहते हैं लेकिन वो उनके फ्लेट में जाकर छुप जाते हैं.

2003 में स्टेकलोव इंस्टिट्यूट ऑफ मैथमेटिक्स पीटर्सबर्ग में शोध करने के दौरान डॉ. ग्रिगोरी ने इंटरनेट पर अपने पेपर पोस्ट करने शुरू किए थे। उनकी इन पोस्ट से पता चला था कि उन्होंने पॉइनकेयर कंजेक्चर को सुलझा दिया है। गणित की यह जटिल पहेली उन सात जटिलतम सवालों में से एक है जिनमें से प्रत्येक के सुलझाने पर क्लेय इंस्टिट्यूट एक मिलियन डॉलर इनाम में देता है।बाद में उनके जबाब के परीक्षणों से यह साफ हो गया की वो सही थे। जिस समय डॉ. ग्रिगोरी ने इसे सुलझाया यह पहेली सौ साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी थी और इससे ब्रहमांड के आकार का पता चल सकेगा.

2003 के बाद डॉ. ग्रिगोरी ने स्टेकलोव इंस्टिट्यूट से इस्तीफा दे दिया और उनके मित्र बताते हैं कि उन्होंने गणित से भी संबंध तोड़ लिया है। अब वो गणित पर चर्चा भी करना पसंद नही करते हैं।
(bhaskar)
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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.

20100323

खुद खत्म होकर हमारी दुनिया को रोशन करेगा पथराड

पथराड नर्मदा के तट पर बसा हुआ इतना छोटा सा गांव है कि अगर आप अपनी मेज पर मध्यप्रदेश का नक्शा फैला लेंगे तो उसकी हैसियत सूई की नोक से शायद ही बड़ी हो। जल्द ही नक्शे पर सूई की नोक बराबर हैसियत वाला पथराड अपनी यह हैसियत भी खो देगा. लेकिन आप पथराड के इस अवसान पर मातम मत मनाइये. आप उस चार सौ मेगावाट बिजली से अपने हिस्सेदारी की चिंता करिए जो पथराड को डुबाकर आपके लिए तैयार होनेवाली है.

नर्मदा को लेकर लिखे गए अपने पिछले आलेख में मैनें जिक्र किया था कि मैं पिछले दिनों महेश्वर में था। जहां एस कुमार नामक कंपनी एक हाई डैम का निर्माण करा रही है, जिससे चार सौ मेगावाट बिजली पैदा होगी, मगर परियोजना के कारण तकरीबन 61 गांव डूब जाएगें। डूबने वाले उन्हीं गांवों में से एक है पथराड। जब मैं महेश्वर में था तो इस सेमिनार में उपस्थित तकरीबन 6०-7० पत्रकारों को इस परियोजना से प्रभावित गावों में जाने और वहां के लोगों से बातचीत करने का मौका मिला। मैं जिस टीम में था वह टीम पथराड गांव गई थी। हम जब उस गांव पहुचे तो शाम ढल चुकी थी और अंधेरा पूरी तरह कायम हो चुका था।

चूंकि हम निर्धारित समय से काफी देर से पहुंचे थे, सो गांव के लोगों ने सबसे पहले खाने का आग्रह किया। तय हुआ कि दो-दो लोग एक घर में खा लेंगे। हमारी टीम में बारह लोग थे, इस तरह हमने छह अलग-अलग घरों का भोजन चखा। मगर मामला सिर्फ भोजन चखने का ही नहीं था, हम लोग हर घर की परंपरा, आर्थिक स्थिति, वातावरण और व्यवहार को भी सलीके से चख रहे थे। मैं जिस घर में गया था, वह चार भाइयों का संयुक्त परिवार था, चार भाइयों की चार बीवियां, उनकी दो-तीन बहुएं और दस बेटियां। इतना भरा पूरा घर तो मैनें अपनी जिंदगी में नहीं देखा था। हमने खाते वक्त भी महसूस किया कि हमारे मेजबान हमारे लिए जिस चीज की फरमाइश करते वह पलक झपकते हाजिर हो जाती। पंद्रह वर्ष से पैंतालिस वर्ष तक की तकरीबन सत्रह-अठारह महिलाएं हमारी खातिर में जुटी थीं.

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भारत गांवों का देश जहां गावों की संख्या पांच लाख से भी अधिक है। अगर एक पथराड न भी रहे तो क्या फर्क पड़ता है? चार सौ मेगावाट बिजली के बदले 50-100 गांव उजड़ ही गए तो क्या होगा? इस विशाल देश में इन गावों के लोग इस तरह एडजस्ट हो जाएगें कि पता भी नहीं चलेगा। कौन जानना चाहेगा कि पथराड के राधेश्यामजी कहां गुम हो गए? यह सब जानते हुए भी मैं पथराड का जिक्र लेकर बैठ गया हूं, क्योंकि न जाने क्यों मुझे लगता है कि पांच लाख गांवों की भीड़ में एक पथराड भी उतना ही जरूरी है जितना चार सौ मेगावाट बिजली के दम पर रोशन होने वाली हमारी दुनिया.

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आज के वक्त में जब हम न्यूक्लियर फैमली और स्वतंत्रता की बात करते हैं इतने लोगों का एक साथ अपने-आप में चमत्कार से कम नहीं। हमने अपने दूसरे साथियों से पूछा तो यही जवाब मिला कि वे जिस घर में गए थे वहां भी संयुक्त परिवार ही थे। दूसरी महत्वपूर्ण बात जो पहली नजर में समझ आई कि उस गांव में पलायन न के बराबर है। हमने इस बात की पुष्टि लोगों से बातचीत कर भी कर ली। उन्होंने बताया कि चुकि इस गांव की कृषि योग्य जमीन सौ प्रतिशत सिंचित है, इसलिए खेती से इतनी आमदनी हो जाती है कि कहीं जाना नहीं पड़ता है।

नई पीढ़ी के लड़कों ने व्यवसाय की ओर भी कदम बढ़ाए हैं, मगर उनके व्यवसाय का केंद्र भी पथराड ही है। वे वहीं मोबाइल की दुकान, राशन की दुकान, केबल टीवी जैसे धंधे करते हैं। इसलिए नहीं कि खेती से उनका काम नहीं चलता, सिर्फ इसलिए कि ये लोगों की जरूरत हैं और वे भी मोनोटोनी से उबरना चाहते हैं। गांव का हर घर पक्के का था और तकरीबन हर घर में इंवर्टर लगा था। कई घरों के सामने टैक्टर और चार पहिया गाड़ी खड़ी नजर आ रही थी। गांव इतना समृद्ध हो सकता है और इतना आत्मनिर्भर यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं था। खाने के बाद जब महफिल जमी और लोगों ने विस्थापित किए जाने और ठीक से पुनर्वास न किए जाने की व्यथा सुनाई और अपना संकल्प सुनाया कि अगर समुचित पुनर्वास न हुआ तो यहीं डूबेंगे, तो मन सिहर उठा। सिर्फ इसलिए नहीं कि इनके संघर्ष में कितनी दृढ़ता है, इसलिए भी कि इतना सुंदर और समृद्ध गांव मैनें जीवन में नहीं देखा था। इसे भी मिटा दिया जाएगा...

इस इलाके के लोगों ने पुनर्वास की समस्या को लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के बैनर तले जबरदस्त संघर्ष किया है। इस बांध के निर्माण में जुटी तीन विदेशी कंपनियों को वापस लौट जाने के लिए मना लिया है। अब एक देसी कंपनी एस कुमार बांध बनाने में जुटी है। बांध तकरीबन पूरी तरह बन चुका है। बहुत कम काम बचा है, मगर पुनर्वास की दिशा में एक प्रतिशत काम भी नहीं हुआ है। लोग संघर्ष में जुटे हैं, लड़ रहे हैं और डूबने को तैयार हैं। इस बांध से चार सौ मेगावाट बिजली बनेगी, जिससे देश के कई घर रोशन होंगे। मगर मेरे लिए उनमें से कोई रोशन घर उतना आकर्षण पैदा नहीं कर सकेगा जितना पथराड का वह घर था जहां 12 मार्च 2010 की रात मैनें खाना खाया था और लोगों के संघर्ष की दास्तां सुनी थी। वहां से लौट आने के बाद भी मुझे बार बार यह अहसास हो रहा है कि पथराड नाम भले ही पथरीला हो लेकिन वहां के लोग पत्थरदिल नहीं है. आखिर क्यों ऐसे लोगों को डुबोकर हम अपने घरो को रोशन कर लेना चाहते हैं?

(पुष्यमित्र)

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20100322

मीट द थ्री इडियट्स

मशहूर फिल्म थ्री इडियट्स के रैंचो की तरह ही देश में ऐसे कई हीरों हैं, जो जीवन को नई दिशा दे रहे हैं. हाल में कुछ ऐसे ही इडियट्स की प्रतिभा को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने देखा-समझा.
दोस्तो, फिल्म थ्री इडियट्स में रणछोड दास श्यामल दास छांछड का कैरेक्टर तो तुम्हें याद होगा, लेकिन क्या तुम्हें पता है ऐसे हीरो देश के हर हिस्से में बसते हैं और इनके आविष्कारों से न जाने कितने लोगों की जिंदगी बदल चुकी है। कुछ ऐसे ही वैज्ञानिकों को पिछले दिनों राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया, जहां इन्होंने आम लोगों की जिंदगी से जुडे अपने इन छोटे-छोटे आविष्कारों की एग्जीबिशन भी लगाई। इसी एग्जीबिशन में हमारी मुलाकात हुई थ्री इडियट्स से। इन यंग इडियट्स के आविष्कार वाकई आश्चर्यचकित करने वाले हैं.

ब्रीथिंग सेंसर अप्रेटस
16 साल के सुशांत पटनायक रीयल लाइफ में भी हीरों हैं। भुवनेश्वर के डीएवी पब्लिक स्कूल की 12वीं क्लास में पढने वाले सुशांत ने एक ऐसी डिवाइस बनाई है जो विकलांगों के लिए एक वरदान है। सुशांत ने एक ब्रीथिंग सेंसर अप्रेटस बनाया है। इसकी मदद से दृष्टिहीन और लकवाग्रस्त रोगी महज सांस के इशारे से भोजन, पानी जैसी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। जैसे ही व्हीलचेयर पर बैठे व्यक्ति को प्यास लगेगी, चेयर पर लगी डिवाइस को सांस के जरिए सूचना मिल जाएगी और सांस का इशारा पाते ही घर में दूसरे व्यक्ति के पास मौजूद डिवाइस पर लाइट जलने लगेगी। इसके अलावा, इस डिवाइस के जरिए विकलांग व्यक्ति बल्ब भी जला सकता है। सुशांत का कहना है कि एक स्वस्थ और विकलांग व्यक्ति में दो चीजें कॉमन होती हैं, पहला सांस और दूसरा ब्रेन। उनके मुताबिक उन्होंने इसी सिद्धांत को आधार बनाते हुए इस डिवाइस पर काम शुरू किया.
डिवाइस की खासियतों के बारे में बताते हुए सुशांत कहते हैं कि यह डिवाइस दुर्घटनारोधक भी है और इसका इस्तेमाल कारों में भी किया जा सकता है। इसमें लगा सेंसर सामने अवरोधक का पता लगा कर उसे वहीं रोक देता है। सुशांत बताते हैं कि उनकी इस डिवाइस के जरिए चेयर पर बैठा व्यक्ति सांसों के जरिए एसएमएस भी भेज सकता है। डिवाइस में लगा सेंसर सांसों को रीड करता है और फिर उसे एसएमएस फॉर्मेट में कंपोज करके पाने वाले के पास भेज देता है। सुशांत के मुताबिक उनकी यह ब्रीथ टू एसएमएस डिवाइस बैंकों या घरों में होने वाली लूटपाट की सूचना तुरंत पुलिस तक पहुंचा देगी। सुशांत को इस प्रोजेक्ट के लिए कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। सुशांत का कहना है कि साइंस में उनकी रुचि बचपन से रही है और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे कलाम से वे खासे प्रभावित हैं और उनकी तरह एक वैज्ञानिक बनना चाहते हैं। सुशांत का कहना है कि वह अब अपने बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर काम करना चाहते हैं। उनके मुताबिक देश की ट्रैफिक समस्या को सुलझाने के लिए वह एक ऐसी कार बनाना चाहते हैं जो सांसों से उडान भरेगी.

कपडे सुखाने के लिए सेंसर
अपनी बीमार मम्मी की तकलीफ देखते हुए 16 साल के पीयूष अग्रवाल ने एक ऐसी डिवाइस बना डाली जो कामकाजी के साथ-साथ घरेलू महिलाओं के लिए भी उपयोगी है। हजारीबाग के डीएवी पब्लिक स्कूल में 11वीं क्लास में पढने वाले कॉमर्स के स्टूडेंट पीयूष जब छोटे थे तो उनकी मम्मी अक्सर बीमार रहती थीं। बारिश के चलते उन्हें कपडे उठाने के लिए बार-बार छत पर आना पडता था और जैसे ही धूप खिलती उन्हें फिर कपडे डालने के लिए छत पर जाना पडता। पीयूष इस बात से बेहद परेशान रहते कि बारिश के चलते उनकी बीमार मम्मी को कितनी तकलीफें उठानी पडती हैं। पीयूष जब 7वीं क्लास में पढ रहे थे तो उनमें जुनून उठा कि मम्मी को वे इस समस्या से निजात दिलाएंगे। बस फिर क्या था पीयूष ने कपडों को बारिश में भीगने से रोकने वाली डिवाइस बना डाली। पीयूष बताते हैं कि उनकी डिवाइस में एक सेंसर लगा है। जैसे ही बारिश की बूंदे सेंसर पर गिरेंगी, सेंसर तुरंत एक्टीवेट हो जाएगा और डिवाइस में लगी मोटर कपडों को रस्सी को खींच कर अंदर की ओर ले जाएगी। जैसे ही धूप निकलेगी वैसे ही मोटर कपडों को बाहर ले आएगी। इस तरह से बार-बार कपडे उठाने और डालने के झंझट से महिलाओं को मुक्ति मिलेगी। पीयूष के मुताबिक उनकी इस डिवाइस को काफी पसंद किया गया है और कई कंपनियों ने भी इसमें रुचि दिखाई है। इससे पहले भी पीयूष को अपने इस आविष्कार के लिए इग्नाइट-09 में अवॉर्ड भी मिल चुका है। पीयूष का कहना है कि जल्द ही वे इसका कॉमर्शियल वर्जन भी लाने जा रहे हैं.

बेड सोर प्रिवेंशन बेड
कहते हैं जरूरत आविष्कार की जननी है और कुछ ऐसा ही हुआ तमिलनाडु के 21 साल के प्रतिभाराजन के साथ। प्रतिभा की प्रतिभा छिपी न रह सकी। चेन्नई के राजलक्ष्मी इंजीनियरिंग कॉलेज में बॉयोमेडिकल इंजीनियरिंग साइंस के फाइनल इयर के स्टूडेंट प्रतिभा की दादी मां को कैंसर था और लंबे समय तक बिस्तर पर पडे रहने से उन्हें बेड सोर हो गया था जिसके चलते उनके शरीर पर कई जगह गहरे जख्म बन गए थे। प्रतिभा के मुताबिक उनसे अपनी दादी का दुख नहीं देखा गया। प्रतिभा बताते हैं कि परंपरागत बेड सोर प्रिवेंशन बेड भी बेकार साबित हुए। आखिरकार पूरी लगन के साथ प्रतिभा ने अपना बेड सोर प्रिवेंशन बेड बनाने की ठान ली। लगभग छह महीने की मेहनत के बाद प्रतीभा ने एक ऐसा बेड बनाया जो बेड सोर रोकने में पूरी तरह कारगर था। प्रतिभा ने इसमें अलग-अलग पैरलल चैंबर बनाए थे, जिनसे एयर पाइप अटैच थे। साथ ही हवा की एंट्री और एक्जिट के लिए अलग-अलग पाइप लगाए गए थे। प्रतिभा के मुताबिक लगभग तीन बार लगातार नाकामी हाथ लगने के बाद आखिरकार चौथी बार में वे कामयाब हो गए। प्रतिभा कहते हैं कि पैरेंट्स और कॉलेज फैकल्टी के सहयोग से ही वे यह आविष्कार सामने ला सके.
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