किसी भी प्रकार के धर्मांतरण पर गाँधीजी की कठोर दृष्टि थी.
मैं पूँछता हूँ कि अगर धर्म के बारे में लोग खुद फ़ैसला लेने के लिये स्वतंत्र हैं तो ये मिशनरी वहाँ क्या मूँगफ़ली बेच रहे हैं? कीड़े-मकोड़ों की भाँति अपनी संख्या बढ़ाने को आतुर ये लोग अपनी जमात से बुराइयां तो दूर नहीं कर पा रहे हैं जिनसे ये घिरते जा रहे हैं. आज भी सबसे ज्यादा मनोवैज्ञानिक मदद की जरूरत इन्हीं लोगों को है.
भारत में ये लोग अकाल या किसी संकट के समय में असहाय जनता से यीशु की शरण में आने को कहते हैं. जैसे पानी की कमी वाले इलाके में एक Handpump लगवा देंगे, पर जल वही प्राप्त कर सकेगा जो यीशु को मानेगा. भूखी-प्यासी जनता को धर्म से नहीं रोटी-कपड़ा से मतलब है. सरकार अगर ये चीजें मुहैया करा सके तो वही लोग ही इन कुकुरमुत्तों को भगा देंगे.
हम बहुत सी बातों पर गर्व कर सकते हैं. पर दुःख तो इस बात का है कि २१वीं सदी में हम चंद्रयान तो भेज दिये हैं पर एक-ठौ नल नहीं लगवा पाये ताकि पानी के लिये कोई अपना धर्म न बदले.
ये जो अपना INDIA है ना, बड़ी ही अज़ीब जगह है. जो कोई विदेशी यहाँ आता है तो नतमस्तक हो जाता है और हम सब, हम सब यानी यहाँ के निवासी, इसके मस्तक को नत करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते.
20081113
20081111
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यथा:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्।
मा कर्मफल हेतु भूर्मा ते संगोत्स्व कर्मणि ।।
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्।
मा कर्मफल हेतु भूर्मा ते संगोत्स्व कर्मणि ।।
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