20110628

NOIDA, उ.प्र. में भूमि अधि-ग्रहण पर सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी

कब देश की बिना पढ़ी लिखी गरीब जनता यह समझेगी कि शासक वर्ग उन्हें मात्र मत (vote) देने की मशीन समझता है और उनके मतों से पोषित होकर उनको ही भूल जाया करता है? निर्वाचित होने के उपरान्त धनी वर्ग की सेवा और पोषण ही उनका ध्येय बन जाता है.

स्वतंत्रता के पश्चात भारत में कृषि को उन्नत बनाने की बहुत सी योजनाये शुरू की गई. किन्तु पिछले कई वर्षों में हुए चहुमुखी विकास के नाम पर कृषि को किस तरह निचले पायदान पर धकेल दिया गया यह किसी से छुपा नहीं है. जैसे हमारे संत मनमोन सिंह जी कृषकों को कृषि छुडवाकर नौकरी देना चाह रहे हैं.

वैसे भी अब विकास का अर्थ 'बहुजन हिताय' न होकर 'धनिक हिताय' भर बचा है. विशेषाधिकारों के बल पर उच्च कोटि की कृषि योग्य भूमि को महानगरों में बदला जा रहा है तो कहीं कल- कारखानों, Multiplexes, Parks के नाम पर भूमि हथियाकर व्यापारिक लाभ के लिए प्रयोग किया जा रहा है. कहने के लिए कृषकों को भूमि का मूल्य चुकाया जा रहा है किन्तु हमारी इस सामजिक व्यवस्था में वो सब एक मजदूर बन कर रह जावेंगे... .. इस के जिम्मेदार होंगे धनी वर्ग के लोग और उनके इशारों पर ऐसी नीतियां बनाने वाले शासक.

धनी वर्ग धन का लालच देकर शासक वर्ग को जन सेवक से निजी सेवक बना कर अपने हित की योजनायें बनवाते रहते है... ... नीरा राडिया जैसे लोग ऐसे ही निजी सेवकों का काम करते हैं... और लाभ टाटा, बिड़ला Reliance को होता है... फल भोगते हैं आम लोग.

दुःख है कि सर्वोच्च प्राथमिकता वाले विषय पर बहस करने में हमें इतने वर्ष लग गए.

कल सर्वोच्च न्यायालय ने NOIDA में भूमि अधि-ग्रहण पर उ.प्र. शासन के को लताड़ लागते हुए कहा कि देश में नंदीग्राम जैसी और घटना नहीं होनी चाहिये. त्वरित धनोपार्जन की अभिलाषा से देश के विकास का मखौल उड़ाने की मानसिकता वाले व्यवसायी वर्ग एवं निम्नकोटि की नीतिगत अभिज्ञता प्रदर्शित करने वाले शासक वर्ग पर उचित प्रहार किया है.
----------------------------------------------------------------------------------------------- कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.