हजारीबाग. 58 वर्षीय मोलनी देवी किसान की बेटी हैं. बचपन खेत
खलिहानों में काम करते बीता. कभी स्कूल नहीं गईं. 10 वर्ष की उम्र में शादी
हुई, पर खेती बाड़ी से लगाव नहीं छूटा. बड़कागांव विधानसभा सीट से तीन बार
विधायक रहे लोकनाथ महतो की पत्नी मोलनी आज भी अपनी छोटी सी बारी (बगान)
में मेहनत से सब्जियां उगाती हैं. फिर उसे बेचने बाजार भी स्वयं जाती हैं.
इससे जो कमाई होती है, उससे घर चलाती हैं. जरूरत पडऩे पर पति की आर्थिक मदद भी करती हैं. यह सिलसिला 35 वर्षों से जारी है. दो बेटों और दो बेटियों की मां मोलनी कहती हैं- ई 15 बरष (वर्ष) विधायक रहलथिन. ई से एको किरी (पैसा) नाय जानियन. उल्टी हमरे से साग सब्जिया बेचलाहा पैसवा ले लेवो हथीन. आजसू के हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र प्रभारी लोकनाथ कहते हैं, मोलनी घर की लक्ष्मी हैं. उनके सपोर्ट के बिना राजनीति नहीं कर पाता.
1965 में मोलनी की शादी हुई. उस समय पति खेत में हल चलाते थे और वे रोपा रोपती थीं. पति के राजनीति में आते ही वे खेतों से दूर हो गए. लेकिन, मोलनी की दिनचर्या नहीं बदली. वे आज भी तड़के पांच बजे उठती हैं. उठने के साथ ही पहले घर की साफ-सफाई में जुटती हैं. फिर गौशाला में मवेशियों को चारा-पानी देने से लेकर उनका गोबर भी स्वयं साफ करती हैं. एक घंटे में ये काम निपटाने के बाद भोजन की व्यवस्था में जुट जाती हैं.
घर में गैस होने के बावजूद वे चूल्हे पर खाना पकाती हैं. परिवार को खिलाने-पिलाने के बाद वे बारी में जुट जाती हैं. सब्जी तोडऩे और खर-पतवार साफ करने का काम दोपहर तक निपटा लेती हैं. फिर वे साग-सब्जी की टोकरी सिर पर रखकर बड़कागांव डेली मार्केट के लिए निकल पड़ती हैं. मार्केट में उनका व्यवहार बहुत सामान्य होता है. दो-चार घंटे में 100-200 रुपए कमाकर वे शाम ढलने से पहले घर लौट आती हैं.
------------------------------------------------------ कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.
इससे जो कमाई होती है, उससे घर चलाती हैं. जरूरत पडऩे पर पति की आर्थिक मदद भी करती हैं. यह सिलसिला 35 वर्षों से जारी है. दो बेटों और दो बेटियों की मां मोलनी कहती हैं- ई 15 बरष (वर्ष) विधायक रहलथिन. ई से एको किरी (पैसा) नाय जानियन. उल्टी हमरे से साग सब्जिया बेचलाहा पैसवा ले लेवो हथीन. आजसू के हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र प्रभारी लोकनाथ कहते हैं, मोलनी घर की लक्ष्मी हैं. उनके सपोर्ट के बिना राजनीति नहीं कर पाता.
1965 में मोलनी की शादी हुई. उस समय पति खेत में हल चलाते थे और वे रोपा रोपती थीं. पति के राजनीति में आते ही वे खेतों से दूर हो गए. लेकिन, मोलनी की दिनचर्या नहीं बदली. वे आज भी तड़के पांच बजे उठती हैं. उठने के साथ ही पहले घर की साफ-सफाई में जुटती हैं. फिर गौशाला में मवेशियों को चारा-पानी देने से लेकर उनका गोबर भी स्वयं साफ करती हैं. एक घंटे में ये काम निपटाने के बाद भोजन की व्यवस्था में जुट जाती हैं.
घर में गैस होने के बावजूद वे चूल्हे पर खाना पकाती हैं. परिवार को खिलाने-पिलाने के बाद वे बारी में जुट जाती हैं. सब्जी तोडऩे और खर-पतवार साफ करने का काम दोपहर तक निपटा लेती हैं. फिर वे साग-सब्जी की टोकरी सिर पर रखकर बड़कागांव डेली मार्केट के लिए निकल पड़ती हैं. मार्केट में उनका व्यवहार बहुत सामान्य होता है. दो-चार घंटे में 100-200 रुपए कमाकर वे शाम ढलने से पहले घर लौट आती हैं.
एकर से बेस त हमीन पहले हलीय
मोलनी कहती हैं, आज 35 साल से साग सब्जी बेचै थियै. साबुन सोडा सब अपने पैसा से हम करो हियै. अभियो नून (नमक), तेल, हरदी (हल्दी), मसाला अर पहुना (मेहमान) के हमरे जोगे (संभालना) परो हे. इनखा (पति) घर के कोई फिकीर हैये नखन. सब हमर भरोसे छोड़ देला हे.
इनखा जे पेंसिल (पेंशन) मिलो हन से घूमे फिरे में खरच (खर्च) करो हथ. अर हमर जोगवल (बचत किया हुआ) पैसा से घर चलो हो. एकर से बेस त हमीन पहले हलीय, जब ई (पति) नेता नाय बनल हलथ. कम से कम साथे खेतिया त करो हलियै. कहियो कहियो त इन खर से बातोचीत बंद हो जाहै. मुदा (किंतु) का करियै. अब त करहेन पड़तै. बाल बच्चा सब अपन रूवा धूवा (काम-काज) में लगल हथ. सेले अपने सब करो पड़ो है.
मोलनी कहती हैं, आज 35 साल से साग सब्जी बेचै थियै. साबुन सोडा सब अपने पैसा से हम करो हियै. अभियो नून (नमक), तेल, हरदी (हल्दी), मसाला अर पहुना (मेहमान) के हमरे जोगे (संभालना) परो हे. इनखा (पति) घर के कोई फिकीर हैये नखन. सब हमर भरोसे छोड़ देला हे.
इनखा जे पेंसिल (पेंशन) मिलो हन से घूमे फिरे में खरच (खर्च) करो हथ. अर हमर जोगवल (बचत किया हुआ) पैसा से घर चलो हो. एकर से बेस त हमीन पहले हलीय, जब ई (पति) नेता नाय बनल हलथ. कम से कम साथे खेतिया त करो हलियै. कहियो कहियो त इन खर से बातोचीत बंद हो जाहै. मुदा (किंतु) का करियै. अब त करहेन पड़तै. बाल बच्चा सब अपन रूवा धूवा (काम-काज) में लगल हथ. सेले अपने सब करो पड़ो है.
------------------------------------------------------ कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.