20081125

हेमंत करकरे और उनकी एटीएस

महाराष्ट्र के एंटी टेररिस्ट स्क्वाड (एटीएस) और उसके प्रमुख हेमंत करकरे के बारे में बिना ठीक से जाने इस पूरे हिन्दू आतंकवादी थ्योरी को समझ पाना मुश्किल होगा. श्रीमान हेमंत करकरे कंधार विमान अपहरण कांड के दौरान रिसर्च एण्ड एनेल्सिस विंग (रॉ) में तैनात थे. कंधार विमान अपहरण काण्ड के पूर्व अमेरीकी जांच एजंसी एफबीआई ने भारतीय नोडल एजंसी को कुछ संदिग्धों के बारे में टिप दी थी. उस समय रॉ और पुलिस के बीच समन्वय का जिम्मा श्रीमान करकरे के ही पास था. भारतीय एजंसियों ने एफबीआई की टिप के बाद भी उन टेलीफोन काल्स को ठीक से मानीटर नहीं किये.

नतीजा हुआ कि कंधार विमान अपहरण काण्ड हो गया. जब आईसी-१८४ अपहृत हो गया तो मानीटरिंग में एफबीआई ने पाया कि उन्होंने भारतीय एजंसियों को जिन संदिग्ध नंबरों को मानीटर करने के बारे में सुझाया था उसी से कंधार के अपहरणकर्ताओं की नियमित बातचीत हो रही है. एफबीआई ने जब यह जानकारी भारतीय एजंसियों को दी तो खलबली मच गयी. तत्कालीन पुलिस उपायुक्त प्रदीप सावंत के नेतृत्व में अपराध अन्वेषण ब्यूरो के अफसरों ने उस मोबाईल फोन का लोकेशन ट्रेस किया और छापा मारकर आतंकवादियों के सहयोगियों को मुंबई के जोगेश्वरी पश्चिम की एक मुस्लिम बस्ती से गिरफ्तार कर लिया.

विमान अपहरणकाण्ड के कुछ दिनों बाद रॉ हेमंत करकरे को जिम्मेदारी ठीक से न निभा पाने का दोषी मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी. हालांकि करकरे किसी तरह कार्रवाई से बच गये लेकिन उन्हें हर प्रकार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया. उन्हें यूरोपीय देश में साईड पोस्टिंग पर डाल दिया गया. जब वे महाराष्ट्र काडर में वापस लौटे तो लंबे समय तक उन्हें किसी महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त नहीं किया गया. वे मुंबई पुलिस आयुक्तालय में संयुक्त आयुक्त (अपराध) की पोस्टिंग पाने की लाबिंग कर रहे थे. लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें इस पद के योग्य नहीं माना. लेकिन किसी तरह वे संयुक्त आयुक्त (प्रशासन) तक पहुंचने में कामयाब रहे. इसके बाद एटीएस प्रमुख तक पहुंचने में उन्होंने महीनों लाबिंग की. कंधार विमान अपहरणकाण्ड में जिन पुलिस अधिकारियों पर शक किया गया उनमें हेमंत करकरे का नाम भी शामिल है. मुंबई के तत्कालीन पुलिस आयुक्त रानी मेन्डोसा, करकरे और महाराष्ट्र के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक सुभाष मल्होत्रा का नार्को हो जाए तो कंधार विमान अपहरण मामले में कई राज सामने आ सकते हैं.

ऐसे हेमंत करकरे महाराष्ट्र के एटीएस के प्रमुख हैं. १२ जुलाई २००६ को मुंबई में श्रृंखलाबद्ध विस्फोट हुए. उन विस्फोटों के सिलसिले में कई अभियुक्त गिरफ्तार किये गये. ये सारे अभियुक्त आईबी की शिनाख्त पर पकड़े गये आतंकी गुट के "स्लीपर सेल" के सदस्य थे. उन्हीं आतंकियों को मुंबई लोकल ट्रेन में हुए विस्फोटों का अभियुक्त बना दिया गया. उनके आंतकी होने और हथियार रखने के सबूत तो थे पर वे मुंबई के लोकल ट्रेनों में हुए विस्फोटों के जिम्मेदार थे, तमाम नार्को टेस्ट के बाद भी यह बात साबित नहीं हो रही थी. मामले की सुनवाई कर रही तत्कालीन जज मृदुला भाटकर की हैरानियों के किस्से आम हैं. पिछले दिनों जब संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) राकेश मारिया के नेतृत्व में मुंबई पुलिस ने तमाम आतंकी वारदातों में शामिल गिरोह को पकड़ा और उनसे पूछताछ की तो पता चला कि उस बमकाण्ड को नये पकड़े गये गिरोह ने अंजाम दिया था. अब मुंबई पुलिस के सामने समस्या यह है कि एटीएस ने जिन लोगों पर महीनों से मकोका कोर्ट में पेश कर रखा है उनका क्या करे? हेमंत करकरे और उनकी एटीएस ने जिस तरह से बेवकूफियां की है, वे अगर किसी और देश में होते तो जेल की सलाखों के पीछे होते.

अब जरा उन तथ्यों की भी पड़ताल कर ली जाए जिसके आधार पर एटीएस साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, स्वामी दयानंद आदि को मालेगांव बमकाण्ड का षण्यंत्रकारी करार दे रही है. मालेगांव विस्फोट किसने कराये इसपर अभी निर्णायक रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता. लेकिन यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि साध्वी प्रज्ञा या अन्य गिरफ्तारियों के पीछे एटीएस जिन सबूतों का तर्क दे रही है उसके बूते दुनिया के किसी भी अदालत में उन्हें अपराधी करार नहीं दिया जा सकता. साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, रमेश उपाध्याय, दयानंद पाण्डेय, सुधाकर चतुर्वेदी आदि की टेलीफोन वार्ताएं, एसएमएस और लैपटाप आदि के रूपांतर जो मीडिया को उपलब्ध कराये जा रहे हैं उनमें षण्यंत्र का कोई कथ्य नहीं है. जो मोटरसाईकिल साध्वी चार साल पहले बेच चुकी है उसका विस्फोट में इस्तेमाल होना साध्वी के खिलाफ कोई आपराधिक सबूत नहीं बनता. एटीएस और उसके द्वारा प्रायोजित कुछ समाचार साध्वी के भाषणों के कुछ हिस्सों को प्रस्तुत कर साध्वी को आतंकवादी के तौर पर पेश कर रहे हैं. यदि उग्र भाषण आतंकवादी होने का आधार है तो उन हजारों मौलानाओं-मौलवियों की तकरीरों को क्या कहेंगे जिसमें 'तंजीम अल्लाहो अकबर' के नारे भरे पड़े हैं और हर तकरीर में काफिरों का कत्ल करके इस्लाम के स्थापना की कसम खाते हैं. ऐसे दर्जनों कैसेट हम उपलब्ध करा सकते हैं अगर एटीएस चाहे तो.

आरोप है कि साध्वी को बंदूक चलाना आता है. क्या बंदूक चलाना सीखना अपराध है? बंदूक चलाने और निशाना लगाने में तो अंजली भागवत का जवाब नहीं, तो क्या उन्हें भी किसी दिन आतंकवादी करार दे दिया जाएगा? इसी तरह एटीएस के जरिए एक और आरोप लगाया जा रहा है कि साध्वी को बम बनाने की तकनीकि पता है और उसने यह तकनीकि एक डायरी में लिख रखी है. जबकि दूसरी ओर वे यह भी कहते हैं कि साध्वी टेकसैवी है और लैपटाप और गुप्त कैमरों का उपयोग करती है. जनाब करकरे महोदय अगर साध्वी टेकसैवी है तो इंटरनेट पर सैकड़ों साईट्स ऐसी हैं जो बम बनाने की विधि बताती हैं. क्या इसी आधार पर किसी इंटरनेट सर्विस प्रोवाईडर को अभियुक्त बनाया जा सकता है कि उसकी सेवाओं के कारण इंटरनेट पर वह तकनीकि लोगों के पास पहुंच रही है? खैर मान भी लें तो वह 'बम डायरी' कहां है? उसकी सूचना अदालत या पंचनामें में क्यों नहीं? आप सबको याद होगा कि इस तरह का एक मामला कुछ साल पहले दिल्ली पुलिस ने एक कश्मीरी पत्रकार पर दर्ज किया था. इस मामले में भी पुलिस ने पत्रकार के लैपटाप में आपत्तिजनक सूचनाओं के दर्ज होने की बात कही थी. अदालत में पुलिस की जमकर छीछालेदर हुई.

मिलिट्री इंटेलिजेंस में अपनी सेवाएं दे चुके कर्नल पुरोहित पर क्या आरोप हैं? उनका संपर्क रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय से होना ही अपराध माना गया है. ये रमेश उपाध्याय ही अभिनव भारत नामक संस्था से जुड़े थे और इन्हीं के संपर्क में साध्वी प्रज्ञा थी. एटीएस आरोप लगा रही है कि बमकाण्ड के बाद मेजर रमेश उपाध्याय फोन पर तल्ख बातें कर रहे थे. क्या एटीएस को पता नहीं है कि जो विस्फोट सिमी कार्यालय के बाहर हुआ था. ऐसे में कोई भी व्यक्ति जो हर विस्फोट में सिमी का नाम सुनता आ रहा हो, वह कैसी प्रतिक्रिया देगा? देश में जब कहीं बम फटता है तो ऐसे लाखों लोग होते हैं जिनका खून खौलने लगता है. वे इनके खिलाफ हर तरह से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं. वीर रस के कवि कविताएं भी लिखते हैं तो क्या देश के सारे वीर रस कवियों को लाकर एटीएस की झोली में डाल दिया जाए?

नासिक के भोंसला मिलिट्री स्कूल को निशाना बनाया गया. इसका आधार क्या है? सिर्फ इतना कि अभिनव भारत नामक संगठन की एक बैठक स्कूल परिसर में हुई. इतना ही नहीं सात साल पहले २००१ में बजरंग दल की एक बैठक हुई थी, एटीएस ने इस सूचना का भी ऐसे इस्तेमाल किया मानों दोनों बैठकें एक दूसरे की पूरक हों. क्या इसी आधार पर एटीएस अंजुमन इस्लाम, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया, नदवा, देवबंद आदि मुस्लिम संस्थाओं की जांच करेगा? नदवा, एएमयू और जामिया मिल्लिया से तो कई बार आतंकवादी भी गिरफ्तार हो चुके हैं. क्या एटीएस इनके प्रमुखों की भी जाकर जांच करेगा? जामिया के उपकुलपति मुशीरूल हसन ने बाटला हाउस प्रकरण में गिरफ्तार नवयुवकों को सरकारी खर्चे पर कानूनी मदद देने का ऐलान किया था. मुशीरूल हसन का समर्थन केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह और रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी किया था. क्या एटीएस उन्हें भी संदेह के घेरे में लेगी?

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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.