20090306

बदहाल और कंगाल पश्चिम बंगाल

औद्योगिक विकास में फिसड्डी, काम का मौका उपलब्ध करवाने में नाकाम, कुल खेती का ४९ प्रतिशत अभी भी केवल भगवान भरोसे, राज्य के लोगों की आय राष्ट्रीय आय के मुकाबले नकारात्मक, स्कूलों से भाग जाने वाले छात्रों का प्रतिशत ७८.३, यहां की राजधानी कोलकाता की हालत पटना, रांची और भुवनेश्वर से भी दयनीय लेकिन हत्या, अपहरण और बलात्कार में देश के औसत से दो-गुना, तीन गुना बढ़ोत्तरी. यह नया बंगाल है जो ३० साल के जनवादी शासन के परिणामस्वरूप अपनी दशा को दुर्दशा में बदला देखकर भी कुछ नहीं कर पा रहा है.

पश्चिम बंगाल को केन्द्रबिन्दु बनाकर अर्थशास्त्री विवेक देबरॉय और लवीश भंडारी ने एक ह्वाईट पेपर जारी किया है. लवीश भंडारी और विवेक देबराय दोनों ही शोध संस्था इंडिकस एनेलिटिक्स से जुड़े हुए हैं. इंडिकस द्वारा जारी इस ह्वाईट पेपर में पश्चिम बंगाल की जो तस्वीर उभरकर सामने आती है वह यह कि पश्चिम बंगाल कंगाल हो चुका है. बिजली, पानी, सड़क, रोजगार, स्वास्थ्य हर मोर्च पर पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार नाकाम साबित हुई है. हालांकि ह्वाईट पेपर का सारा जोर प्रदेश के पूरी तेजी से औद्योगीकरण न होने पर केन्द्रित है और सुझावों में भी यही कहा गया है कि ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए कि प्रदेश में तेजी से औद्योगीकरण हो. लेकिन इस जांच-पड़ताल में जो दूसरे तथ्य उभरकर सामने आये हैं वह रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं.

पश्चिम बंगाल की १४.६ प्रतिशत शहरी आबादी गरीबी रेखा ने नीचे रह रही है जबकि गरीबी रेखा के नीचे ग्रामीण आबादी का प्रतिशत २८.६ है. गरीबी और बदहाली का परिणाम क्या आ रहा है यह वहां के हत्या बलात्कार और अपहरण के कारोबार को देखकर समझ में आ जाता है. पश्चिम बंगाल का उद्योग भले ही चौपट हो गया हो लेकिन यहां अपहरण उद्योग ने खूब तरक्की की है. पश्चिम बंगाल में अपहरण उद्योग की विकास दर १.८ प्रतिशत है जो कि राष्ट्रीय औसत से तीन गुना अधिक है. वहीं देश में कुल अपराधों में बलात्कार का प्रतिशत १.१ है तो पश्चिम बंगाल में यह प्रतिशत ४.७ है. यानी राष्ट्रीय औसत से चारगुना ज्यादा.

इंडिकस एनालिटिक्स के बिबेक देबोराय और लवीस भंडारी के इस ह्वाईट पेपर में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल सरकार पांच महारोगों से ग्रस्त है. ये पांच महारोग हैं-

१. विकास की रफ्तार बहुत धीमी है.

२. बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या

३. पश्चिम बंगाल में गरीबी का एकछत्र साम्राज्य है

४. कामगारों के लिए काम नहीं, उद्योग धंधे पूरी तरह से चौपट हो गये हैं

५. पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार वित्तीय, सामाजिक और आधारभूत ढांचा विकसित करने में असफल रही है.

ये पांच कारण उद्योगों और भूमि छीनने के पारंपरिक कारणों से हटकर है। 1960 के बाद से अब तक राज्य के आंकडो का विश्लेषण करने के बाद इस रिपोर्ट ने स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा और उद्योग, सेवा क्षेत्र से लेकर कानून व्यवस्था तक की स्थिति प्रदेश की स्थिति चिंता जनक है। वर्ष 2007-08 में पश्चिम बंगाल मे प्रति व्यक्ति राज्य जीडीपी 29457 रूपए था। इस तरह देश में इसका 18 वां स्थान था। रिपोर्ट ने साल दर साल पश्चिम बंगाल में कम्युनिष्ट सरकारों की योग्यता पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह प्रदेश व्यापार के अनुकूल माहौल तैयार करने मे अक्षम रहा। रिपोर्ट में राज्य में कम विकास, रोजगार के कम अवसरों की बात की गई है। ये स्थिति उद्योग से लेकर सेवा क्षेत्र तक में है। कभी हिन्दुस्तान की राजधानी रहा कोलकता कारोबार करने में सहजता के मामले में बारहवे स्थान पर है। इससे बेहतर स्थिति पटना रांची जयपुर भुवनेश्वर और लखनऊ की है।

रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल की सरकार कानून व्यस्था सुनिश्चित करने में भी अक्षम रहा है। रिपोर्ट के अनुसार यहां पुलिसकर्मियों की संख्या आबादी में प्रति 1लाख पर 94 है। जबकि राष्ट्रीय औसत 126 का है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में अदालतों में न्यायिक मामले सुनवाई की आस में साल दर साल इकठ्ठे होते जा रहे है। गंभीर किस्म के अपराधों का प्रतिशत भी लगातार ऊंचा उठ रहा है। ये प्रदेश आधारभूत ढांचागत तंत्र उपलब्ध कराने में अक्षम रहा है। रिपोर्ट कहती है कि 2005-2006 में पश्चिम बंगाल में 27.9 फीसदी घरों में ही साफ पानी पहुंचता था। जबकि महाराष्ट्र में 78.4 फीसदी घरों में साफ पानी पहुंचता है। तमिलनाडु में 84.2 फीसदी घरों में साफ पानी मिलता है। रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा के क्षेत्र में भी पश्चिम बंगाल धराशाई रहा है। कैग ने भी सर्व शिक्षा अभियान के क्रियान्वयन को लेकर राज्य की सुस्ती पर लताड लगाई है। भारत की बौध्दिक राजधानी के नाम से विख्यात राज्य में स्कूल ड्राप आउट रेट 1से10वीं तक 78.03 फीसदी है। सिर्फ बिहार, नागलैंड , मेघालय और सिक्किम ही अधिक पिछड़े है। रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य के मोर्चे पर तो इस रिपोर्ट में कई कसौटियों पर पश्चिम बंगाल के प्रदर्शन को बांग्लादेश से भी अधिक खराब पाया गया है। वित्तीय प्रबंधन का भी बुरा हाल है. पश्चिम बंगाल में राजस्व घाटा 4.0 फीसदी रहा। जबकि औसतन भारतीये राज्यों में ये घाटा न होकर 0.4 फीसदी अतिरिक्त बढोत्तरी के रूप में है.

देश की बौद्धिक राजधानी अब अशिक्षा की शिकार

कभी देश की बौद्धिक राजधानी कहा जानेवाला बंगाल अब अशिक्षा का शिकार है. शिक्षा का सही विस्तार देखना हो तो देखा जाता है कि नौजवानों में शिक्षा का प्रसार किस प्रकार है. पश्चिम बंगाल में स्कूलों में दाखिले का प्रतिशत ९४.६७ प्रतिशत है जो कि उत्तराखण्ड, हिमाचल, अरूणाचल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और राजस्थान से भी कम है. लेकिन ऐसा नहीं है कि दाखिले के स्तर पर ही हालत दयनीय है. जितने बच्चे स्कूलों में दाखिला लेते हैं उनमें से कक्षा १ से १० तक पहुंचते-पहुंचते ७८.०३ प्रतिशत बच्चे स्कूल छोड़कर चले जाते हैं. प्रति बच्चे पर पश्चिम बंगाल शिक्षा पर १२७९ रूपये का निवेश करता है जबकि बगल का राज्य आसाम भी कक्षा १ से १० के छात्रों के लिए प्रति छात्र ३४२१ रूपये खर्च करता है. पश्चिम बंगाल में प्रति अध्यापक ५७ छात्र हैं जबकि तमिलनाडु में प्रति शिक्षक ३४ छात्र हैं. इसी तरह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रति १०० छात्रों पर ३ अध्यापक हैं जबकि बगल के राज्य आसाम में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रति १०० छात्र पर ७ अध्यापक हैं.

(www.visfot.com से साभार)

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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.

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