20100129

Hindi is not the National Language of India: Gujarat High Court

Delivering a judgment recently on a Public Interest Litigation (PIL), the Gujarat High Court dismissed the claim by the petitioner that Hindi is the National Language of India. The High Court Bench which included Chief Justice S.J.Mukherjee said that Hindi can be termed as an official language of India which is used widely in official work, but there is no notification issued (by the central government) conferring any national language status to Hindi.

Elaborating further, the court said that there is no denial that Hindi has been accepted as a national language by large section of people in India and that Hindi is spoken and written in Devnagari script (the ancient and vedic era language Sanskrit is written in Devnagri script) by large number of peoples in India. But it is also a fact that Hindi is not the National Language of India.

The judgment was delivered in connection with a PIL filed by one Suresh Kacharia, asking the court to make it mandatory and direct the manufacturers of packaged items to print all manufacturing details including the price on the packet in Hindi Language. The bench delivered the aforesaid judgment while dismissing the PIL and stated that in view of the above facts the court was unable to give any directions to the central or state governments as well as packaged item manufacturers for printing packaging details in Hindi.

Here it will be of interest to know that as per 2001 census of India, out of the total national population of 1027 millions, Hindi is the mother tongue of 366 millions mostly concentrated in the northern and central states of India.
(Santosh Kumar Agarwal)
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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.

20100125

गरीबी रेखा के नीचे MLA, बेटा मजदूर

पालनपुर. गुजरात के एक पूर्व विधायक की माली हालत इतनी खराब है कि उन्हें बीपीएल कार्ड के तहत अपना इलाज कराना पड़ रहा है। उनके तीन बेटे नरेगा के तहत मजदूरी करते हैं। अस्सी वर्ष के भीखाजी पूंजाजी ठाकोर 1972 में कांग्रेस के टिकट पर डीसा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने थे।

दमा के मरीज भीखाजी को उनका बेटा रमेश बुधवार को पालनपुर के डॉ. सुरेंद्र गुप्ता के पास इलाज के लिए लेकर आया। एक पूर्व विधायक का बीपीएल कार्ड के साथ इलाज के लिए आना डॉ. गुप्ता के लिए चौंकाने वाली बात थी। हालांकि उन्होंने भीखाजी का मुफ्त इलाज कर दिया।

भीखाजी को पेंशन भी नहीं मिलती है। गुजरात स्थापना की स्वर्ण जयंती के अवसर पर एक जनवरी को गांधीनगर में हुए एक सम्मेलन में पूर्व मुख्यमंत्रियों व विधायकों को सम्मानित किया गया, लेकिन इसमें भीखाजी को आमंत्रित नहीं किया गया। बनासकांठा जिले के साग्रोसणा गांव में रहने वाले भीखाजी ने अपना पूरा राजनीतिक जीवन ईमानदारी से जिया। उन्होंने अपने तीनों बेटों के लिए कभी भी कोई सिफारिश नहीं की। साग्रोसणा गांव में भीखाजी का एक छोटा सा 
कच्चा मकान है। घर में गैस तक नहीं है और खाना चूल्हे पर बनता है.
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क्या मेडल बेच पेट पालूं?

खटीमा. आर्थिक तंगी की वजह से कई अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीत चुके पावरलिफ्टर निजाम अली के लिए अपने कैरियर को आगे बढा पाना मुश्किल हो रहा है।

पैसे की कमी के कारण निजाम के पास अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक अभ्यास के लिए जरूरी पेट पर बांधने वाली बेल्ट, जूते, इनर कास्टच्यूम तथा बेंच प्रेस नहीं है। वह अपने साथी खिलाडियों से इन चीजों को मांगकर जरूरी अभ्यास करते हैं१ इसके अतिरिक्त वह वजन उठाने के लिए नदी से निकाले गए पत्थरों का इस्तेमाल करते हैं।

पैसे की कमी की वजह से ही दो माह बाद रूस में होने वाले चैम्पियनशिप में निजाम का भाग लेना संदिग्ध हो गया है। निजाम न्यूजीलैंड, उजबेकिस्तान और कजाकस्तान में संपन्न चैम्पियनशिप में भी आर्थिक कारणों से भाग नहीं ले पाए थे१ निजाम की चाहत है कि यदि उसे बेहतर सुविधायें मिले तो वह भारत के लिए भी पदक जीत सकते हैं।

हाल ही में प्रशिक्षु सिपाही बने निजाम की माली हालत इतनी खराब है कि बरसात के दिनों में अपने घर में घुटनों तक भरे पानी को सिर्फ निकालते रहते हैं लेकिन वह उसकी मरम्मत नहीं करा सकते हैं।निजाम के पिता ने उसकी मां को छोडकर दूसरी शादी कर ली थी उसके बाद से घर की आर्थिक हालत खराब हो गई थी।

निजाम को अभी मात्न 3500 रूपये की मासिक पगार मिलती है जो कि कहीं से भी पर्याप्त नहीं है। एक पावरलिफ्टर को दिनभर में पांच से छह सौ रूपये भोजन पर खर्च करने की आवश्यकता होती है लेकिन निजाम की हालत ऐसी नहीं है।

निजाम की बदौलत ही उत्तराखंड पुलिस को एशिया स्तर पर आयोजित चैम्पियनशिप में पहला स्वर्ण पदक मिला१ उन्होंने माउंटआबू में संपन्न 9वीं सब जूनियर वर्ग में सबसे ताकतवर व्यक्ति का खिताब जीतते हुए स्वर्ण पदक जीता और अपने गुरू का रिकार्ड तोडा१ निजाम ने इस प्रतियोगिता में अपने से नौ गुणा अधिक वजन उठाया था।

दिसंबर 2009 में ही पुणे में 39 देशों की प्रतियोगिता में निजाम ने भारत को सर्वाधिक पदक दिलाये थे.
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