मायावती के डेढ़ साल के शासन में ही माहौल बदल गया है. यह माहौल कितना बदला है अंदाजा सिर्फ दो नारों से लग जाता है- यूपी विधानसभा चुनाव के समय बसपा कार्यकर्ता नारा लगाते थे- चढ़कर गुंडों की छाती पे, मोहर लगेगी हाथी पे.. जो, बसपा को नहीं चाहते थे वो, भी सपा को हराने के लिए नारा लगाते थे - पत्थर रख लो छाती पे, मोहर लगाओ हाथी पे.. लेकिन अब उत्तर प्रदेश का नारा बदल गया है. उत्तर प्रदेश में नया नारा काम कर रहा है- गुंडे चढ़ गए हाथी पे, पत्थर रख लो छाती पे. वैसे पत्थर रखने से नहीं पत्थर मारने से ही बात बनेगी। क्योंकि, उत्तर प्रदेश में हाथी पगला गया है। और, हाथी की पीठ पर सारे बदमाश चढ़कर उत्तर प्रदेश की जमीन रौंद रहे हैं.
देश का संवैधानिक दादा यानी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा ने अलग-अलग राज्यों में बाहुबली सांसदों (असंवैधानिक दादाओं) का बड़ा भला कर दिया है। और, इसमें रोक लगाने में अदालतें भी कामयाब नहीं हो पा रही हैं। पता नहीं कितने लोगों को याद होगा कि, अदालत से दोषी करार दिए गए लोगों को संसद-विधानसभा का चुनाव लड़ने से रोकने के लिए बात चल रही थी। लेकिन, अब तक इस पर कुछ ठोस नहीं हो सका। जाहिर है जब देश का दादा बनने के लिए मुकाबला चल रहा हो तो, भला छोटे-मोटे दादाओं के दुष्कर्म रोकने की चिंता भला किसे होती.
और, इसका सबसे बुरा असर दिख रहा है उत्तर प्रदेश पर। प्रधानमंत्री बनने की इच्छा ने मायावती के मन में ऐसा जोर मारा है कि मायावती जिन्हें मरवाना चाहती थीं (ऐसा भगोड़े अतीक अहमद ने पहली बार टीवी आने के बाद बोला था) अब वही अतीक अहमद हाथी पर सवार होकर लोकसभा में फिर पहुंचना चाहते हैं। जिससे कम से कम लोकतंत्र को बंधुआ बनाए रखकर उसके जरिए अपने दुष्कर्मों को जनता की इच्छा कहने का माद्दा बना रहे.
मायावती के खासमखास मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दिकी इलाहाबाद की नैनी जेल में मिलकर अतीक के साथ इलाहाबाद और आसपास की लोकसभा सीटों को जीतने की योजना बना रहे हैं। यूपीए सरकार के खिलाफ वोट करने के बाद अतीक के सारे करीबीयों (इलाहाबाद के छंटे बदमाशों) पर मामले हल्के किए जा रहे हैं। मायावती जब सत्ता में आई तो, चिल्ला-चिल्लाकर सपा के जंगलराज और जंगलराज चलाने वाले बदमाशों के सफाए की बात कह रही थीं। तब से अब तक त्रिवेणी संगम में बड़ा पानी बह गया है। इलाहाबाद से जौनपुर, बनारस, गाजीपुर होते हुए गोरखपुर की तरफ बढ़िए। मायावती के सत्ता में आने के बसपा किस तरह से बाहुबलियों की हो गई है ये मजे से दिख जाता है.
चलिए एक बार फिर से पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े बदमाशों की एक लिस्ट देखते हैं- अतीक अहमद (फूलपुर, इलाहाबाद), मुख्तार अंसारी (गाजीपुर अब मऊ से विधायक), रघुराज प्रताप सिंह (विधायक, कुंडा, प्रतापगढ़), धनंजय सिंह (विधायक, रारी, जौनपुर), हरिशंकर तिवारी (हारे विधायक, चिल्लूपार, गोरखपुर)। इन पांचों की हैसियत ये है कि निर्दल चुनाव जीतते हैं या जीतने का माद्दा रखते हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार आने से पहले ये मुलायम के खासमखास थे। ये लिस्ट सिर्फ उनकी है जिनकी चर्चा पुरे प्रदेश में होती है। हर जिले के बदमाशों की गाड़ी पर भी अब नीला हाथी वाला झंडा ही लहराता दिखता है.
अतीक अहमद के लिए इलाहाबाद या फिर इलाहाबाद की ही दूसरी फूलपुर लोकसभा सीट से हाथी सजा तैयार खड़ा है। जैसे संजय दत्त को लड़ाने के लिए अमर सिंह ने तैयारी कर रखी थी वैसी ही तैयारी बहनजी ने वीवीआईपी गेस्ट हाउस में मुलायम सरकार के समय उनके साथ बद्तमीजी करने वाले अतीक के लिए कर रखी है। अतीक चुनाव नहीं लड़े तो, अतीक से आधी से भी कम उम्र की अतीक की बीवी लोकसभा चुनाव लड़ेगी। कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह अपने प्रताप से प्रतापगढ़ की सीट भी समाजवादी पार्टी को जिता चुके हैं। अब राजा के भी कस-बल ढीले पड़ रहे हैं। सुनते हैं कि वो, भी बहनजी के भाई बनना चाहते हैं.
मायाराज के सहारे अपनी गुंडई परवान चढ़ाने की इच्छी रखने वालों में जौनपुर की रारी विधानसभा से विधायक धनंजय सिंह भी शामिल है। लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान धनंजय गुंडई में पारंगत हुआ। अब संसद में पहुंचने के लिए मायावती ने धनंजय को हाथी दे दिया है। धनंजय को संसद में पहुंचाने के लिए पहले से घोषित बसपा प्रत्याशी का टिकट कट गया है। धनंजय को बहनजी की ही सरकार ने 50 हजार रुपए का इनामी बदमाश बनाया था.
वैसे धनंजय के रास्ते में ताजा रोड़ा बना है उत्तर प्रदेश के पांच लाख रुपए का इनामी बदमाश रहा बृजेश सिंह। बृजेश जब तक भगोड़ा रहा तब तक उसके तार भाजपा से जुड़े होने की बात चलती रही। जब दिल्ली पुलिस ने उसे भुवनेश्वर से पकड़ा उसके बाद माहौल बदल गया है। अब बृजेश हाथी की पीठ पर चढ़ने के लिए मुंहमांगी कीमत (हवा 40 करोड़ रु की है) देने को तैयार है। और, चर्चा गरम है कि बृजेश को जौनपुर या चंदौली से बसपा से लोकसभा प्रत्याशी बनाया जा सकता है.
एक जमाने में उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े बदमाश हरिशंकर तिवारी भी हाथी की सवारी कर रहे हैं। छोटा बेटा विनय शंकर भले ही पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे के हाथों हार गया। बड़ा बेटा भीष्म शंकर खलीलाबाद से, बसपा सांसद बन चुका है। अब 2009 के लोकसभा चुनाव में पूरा परिवार हाथी पर झूमते हुए दिल्ली पहुंचने की तैयारी में है। गोरखपुर लोकसभा सीट से हरिशंकर तिवारी का छोटा बेटा विनयशंकर, सटी खलीलाबाद सीट से बड़ा बेटा भीष्मशंकर और गोरखपुर के ही बगल की महाराजगंज सीट से भांजा गणेशशंकर पांडे बसपा प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं। अब बताइए मायावती गुंडों की बिग बॉस हुई या नहीं (दुर्भाग्य ये कि वो, देश का प्रधानमंत्री बनने की जबरदस्त दावेदार हैं)। दरअसल यही वो दीमक है जो, इस देश के लोकतंत्र को अंदर से काफी हद तक खोखला कर चुका है.
देश का संवैधानिक दादा (प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री) बनने के लिए बड़े नेता जिस तरह के कुकर्म (जाने-अनजाने) कर गुजरते हैं। उसी पर खुद बाद में रोते भी रहते हैं। इन बदमाशों के पुनर्जीवन के लिए आखिर लालकृष्ण आडवाणी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी कितने जिम्मेदार हैं। मायावती और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री तो घोषित तौर पर अपराधियों के सरदार बन ही जाते हैं। क्या इसका जवाब कभी खोजा जाएगा?
(हर्षवर्धन त्रिपाठी)
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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.