मशहूर फिल्म थ्री इडियट्स के रैंचो की तरह ही देश में ऐसे कई हीरों हैं, जो जीवन को नई दिशा दे रहे हैं. हाल में कुछ ऐसे ही इडियट्स की प्रतिभा को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने देखा-समझा.
दोस्तो, फिल्म थ्री इडियट्स में रणछोड दास श्यामल दास छांछड का कैरेक्टर तो तुम्हें याद होगा, लेकिन क्या तुम्हें पता है ऐसे हीरो देश के हर हिस्से में बसते हैं और इनके आविष्कारों से न जाने कितने लोगों की जिंदगी बदल चुकी है। कुछ ऐसे ही वैज्ञानिकों को पिछले दिनों राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया, जहां इन्होंने आम लोगों की जिंदगी से जुडे अपने इन छोटे-छोटे आविष्कारों की एग्जीबिशन भी लगाई। इसी एग्जीबिशन में हमारी मुलाकात हुई थ्री इडियट्स से। इन यंग इडियट्स के आविष्कार वाकई आश्चर्यचकित करने वाले हैं.
ब्रीथिंग सेंसर अप्रेटस
16 साल के सुशांत पटनायक रीयल लाइफ में भी हीरों हैं। भुवनेश्वर के डीएवी पब्लिक स्कूल की 12वीं क्लास में पढने वाले सुशांत ने एक ऐसी डिवाइस बनाई है जो विकलांगों के लिए एक वरदान है। सुशांत ने एक ब्रीथिंग सेंसर अप्रेटस बनाया है। इसकी मदद से दृष्टिहीन और लकवाग्रस्त रोगी महज सांस के इशारे से भोजन, पानी जैसी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। जैसे ही व्हीलचेयर पर बैठे व्यक्ति को प्यास लगेगी, चेयर पर लगी डिवाइस को सांस के जरिए सूचना मिल जाएगी और सांस का इशारा पाते ही घर में दूसरे व्यक्ति के पास मौजूद डिवाइस पर लाइट जलने लगेगी। इसके अलावा, इस डिवाइस के जरिए विकलांग व्यक्ति बल्ब भी जला सकता है। सुशांत का कहना है कि एक स्वस्थ और विकलांग व्यक्ति में दो चीजें कॉमन होती हैं, पहला सांस और दूसरा ब्रेन। उनके मुताबिक उन्होंने इसी सिद्धांत को आधार बनाते हुए इस डिवाइस पर काम शुरू किया.
डिवाइस की खासियतों के बारे में बताते हुए सुशांत कहते हैं कि यह डिवाइस दुर्घटनारोधक भी है और इसका इस्तेमाल कारों में भी किया जा सकता है। इसमें लगा सेंसर सामने अवरोधक का पता लगा कर उसे वहीं रोक देता है। सुशांत बताते हैं कि उनकी इस डिवाइस के जरिए चेयर पर बैठा व्यक्ति सांसों के जरिए एसएमएस भी भेज सकता है। डिवाइस में लगा सेंसर सांसों को रीड करता है और फिर उसे एसएमएस फॉर्मेट में कंपोज करके पाने वाले के पास भेज देता है। सुशांत के मुताबिक उनकी यह ब्रीथ टू एसएमएस डिवाइस बैंकों या घरों में होने वाली लूटपाट की सूचना तुरंत पुलिस तक पहुंचा देगी। सुशांत को इस प्रोजेक्ट के लिए कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। सुशांत का कहना है कि साइंस में उनकी रुचि बचपन से रही है और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे कलाम से वे खासे प्रभावित हैं और उनकी तरह एक वैज्ञानिक बनना चाहते हैं। सुशांत का कहना है कि वह अब अपने बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर काम करना चाहते हैं। उनके मुताबिक देश की ट्रैफिक समस्या को सुलझाने के लिए वह एक ऐसी कार बनाना चाहते हैं जो सांसों से उडान भरेगी.
कपडे सुखाने के लिए सेंसर
अपनी बीमार मम्मी की तकलीफ देखते हुए 16 साल के पीयूष अग्रवाल ने एक ऐसी डिवाइस बना डाली जो कामकाजी के साथ-साथ घरेलू महिलाओं के लिए भी उपयोगी है। हजारीबाग के डीएवी पब्लिक स्कूल में 11वीं क्लास में पढने वाले कॉमर्स के स्टूडेंट पीयूष जब छोटे थे तो उनकी मम्मी अक्सर बीमार रहती थीं। बारिश के चलते उन्हें कपडे उठाने के लिए बार-बार छत पर आना पडता था और जैसे ही धूप खिलती उन्हें फिर कपडे डालने के लिए छत पर जाना पडता। पीयूष इस बात से बेहद परेशान रहते कि बारिश के चलते उनकी बीमार मम्मी को कितनी तकलीफें उठानी पडती हैं। पीयूष जब 7वीं क्लास में पढ रहे थे तो उनमें जुनून उठा कि मम्मी को वे इस समस्या से निजात दिलाएंगे। बस फिर क्या था पीयूष ने कपडों को बारिश में भीगने से रोकने वाली डिवाइस बना डाली। पीयूष बताते हैं कि उनकी डिवाइस में एक सेंसर लगा है। जैसे ही बारिश की बूंदे सेंसर पर गिरेंगी, सेंसर तुरंत एक्टीवेट हो जाएगा और डिवाइस में लगी मोटर कपडों को रस्सी को खींच कर अंदर की ओर ले जाएगी। जैसे ही धूप निकलेगी वैसे ही मोटर कपडों को बाहर ले आएगी। इस तरह से बार-बार कपडे उठाने और डालने के झंझट से महिलाओं को मुक्ति मिलेगी। पीयूष के मुताबिक उनकी इस डिवाइस को काफी पसंद किया गया है और कई कंपनियों ने भी इसमें रुचि दिखाई है। इससे पहले भी पीयूष को अपने इस आविष्कार के लिए इग्नाइट-09 में अवॉर्ड भी मिल चुका है। पीयूष का कहना है कि जल्द ही वे इसका कॉमर्शियल वर्जन भी लाने जा रहे हैं.
अपनी बीमार मम्मी की तकलीफ देखते हुए 16 साल के पीयूष अग्रवाल ने एक ऐसी डिवाइस बना डाली जो कामकाजी के साथ-साथ घरेलू महिलाओं के लिए भी उपयोगी है। हजारीबाग के डीएवी पब्लिक स्कूल में 11वीं क्लास में पढने वाले कॉमर्स के स्टूडेंट पीयूष जब छोटे थे तो उनकी मम्मी अक्सर बीमार रहती थीं। बारिश के चलते उन्हें कपडे उठाने के लिए बार-बार छत पर आना पडता था और जैसे ही धूप खिलती उन्हें फिर कपडे डालने के लिए छत पर जाना पडता। पीयूष इस बात से बेहद परेशान रहते कि बारिश के चलते उनकी बीमार मम्मी को कितनी तकलीफें उठानी पडती हैं। पीयूष जब 7वीं क्लास में पढ रहे थे तो उनमें जुनून उठा कि मम्मी को वे इस समस्या से निजात दिलाएंगे। बस फिर क्या था पीयूष ने कपडों को बारिश में भीगने से रोकने वाली डिवाइस बना डाली। पीयूष बताते हैं कि उनकी डिवाइस में एक सेंसर लगा है। जैसे ही बारिश की बूंदे सेंसर पर गिरेंगी, सेंसर तुरंत एक्टीवेट हो जाएगा और डिवाइस में लगी मोटर कपडों को रस्सी को खींच कर अंदर की ओर ले जाएगी। जैसे ही धूप निकलेगी वैसे ही मोटर कपडों को बाहर ले आएगी। इस तरह से बार-बार कपडे उठाने और डालने के झंझट से महिलाओं को मुक्ति मिलेगी। पीयूष के मुताबिक उनकी इस डिवाइस को काफी पसंद किया गया है और कई कंपनियों ने भी इसमें रुचि दिखाई है। इससे पहले भी पीयूष को अपने इस आविष्कार के लिए इग्नाइट-09 में अवॉर्ड भी मिल चुका है। पीयूष का कहना है कि जल्द ही वे इसका कॉमर्शियल वर्जन भी लाने जा रहे हैं.
बेड सोर प्रिवेंशन बेड
कहते हैं जरूरत आविष्कार की जननी है और कुछ ऐसा ही हुआ तमिलनाडु के 21 साल के प्रतिभाराजन के साथ। प्रतिभा की प्रतिभा छिपी न रह सकी। चेन्नई के राजलक्ष्मी इंजीनियरिंग कॉलेज में बॉयोमेडिकल इंजीनियरिंग साइंस के फाइनल इयर के स्टूडेंट प्रतिभा की दादी मां को कैंसर था और लंबे समय तक बिस्तर पर पडे रहने से उन्हें बेड सोर हो गया था जिसके चलते उनके शरीर पर कई जगह गहरे जख्म बन गए थे। प्रतिभा के मुताबिक उनसे अपनी दादी का दुख नहीं देखा गया। प्रतिभा बताते हैं कि परंपरागत बेड सोर प्रिवेंशन बेड भी बेकार साबित हुए। आखिरकार पूरी लगन के साथ प्रतिभा ने अपना बेड सोर प्रिवेंशन बेड बनाने की ठान ली। लगभग छह महीने की मेहनत के बाद प्रतीभा ने एक ऐसा बेड बनाया जो बेड सोर रोकने में पूरी तरह कारगर था। प्रतिभा ने इसमें अलग-अलग पैरलल चैंबर बनाए थे, जिनसे एयर पाइप अटैच थे। साथ ही हवा की एंट्री और एक्जिट के लिए अलग-अलग पाइप लगाए गए थे। प्रतिभा के मुताबिक लगभग तीन बार लगातार नाकामी हाथ लगने के बाद आखिरकार चौथी बार में वे कामयाब हो गए। प्रतिभा कहते हैं कि पैरेंट्स और कॉलेज फैकल्टी के सहयोग से ही वे यह आविष्कार सामने ला सके.
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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.
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