हिमाद्रि तुंग शृंग से
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला
स्वतंत्रता पुकारती
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ
विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के-
रुको न शूर साहसी !
अराति सैन्य सिंधु में, सुवड़वाग्नि से चलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !
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जयशंकर प्रसाद
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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.
आज भी ये पंक्तियां उद्वेलित करती हैं और इन्हें पढकर राष्ट्रभक्ति का वैसी ही जज्बा पैदा होता है जैसा राजपथ पर 26 जनवरी के आयोजन को देखते हुए।
ReplyDeleteअराति सैन्य सिंधु में, सुवड़वाग्नि से चलो,
ReplyDeleteप्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो.nice
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