20090128

पाकिस्तान से लंबी लड़ाई की योजना बनाईये

अजय साहनी Institute of Conflict Management के फेलो हैं. उनका मानना है कि पाकिस्तान के साथ ये लड़ाई आप एक महीने में नहीं जीत सकते. क्योंकि हम ये लड़ाई एक महीने में जीतने की कोशिश कर रहे हैं इसीलिए ये बीस साल से चल रही है, आप एक बीस साल की योजना बना लीजिये तो पाँच साल में ये लड़ाई खत्म हो जायेगी. यह रक्षात्मक युद्ध है, एक लंबा युद्ध है, इसको छोटे युद्ध की तरह लड़ने का मतलब है अपनी क्षमता जाया करना.

प्रश्न- अमेरिकी दबाव के बाद पाकिस्तान ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तोएबा के खिलाफ कार्रवाई भी की है और उसके नेताओं को गिरफ्तार भी किया है. पाकिस्तान की ये कार्रवाई आतंकवादियों के खिलाफ कितना कारगर है?
अजय साहनी- दरअसल कार्रवाही करने का कोई इरादा होता तो खुद की होती. रुके ना होते कि इतना दबाव दुनिया का बढ़े तब वो हल्की सी हरकत करे. सदर से लेकर वजीरेआज़म तक जितने भी सरकार के लोग हैं, एक ही रवैया था इनका, इन्कार का. यहाँ पर लश्कर-ए-तैयबा नाम की कोई चीज ही नहीं है, कोई आतंकवादी शिविर नहीं हैं. किसी किस्म की आतंकवादी गतिविधि यहाँ से नहीं चल रही है। अगर सच्चाई मन में होती, तो वो कहते हाँ भई पता कर रहे हैं, देखते हैं. और पता क्या करते हैं, सबको मालूम है कि लश्करे-ए–तैयबा क्या है.

प्रश्न- पाक ने एक तरह से मान लिया कि है कि मुंबई पर जो आतंकी हमला हुआ वे पाकिस्तानी हैं लेकिन अब जानबूझकर झूठ बोल रहा है.
अजय साहनी- मैं पूछता हूँ कि जब इतने उच्च स्तर से खारिज़ किया जा रहा था तो चौबीस घण्टे के अन्दर- अन्दर इन्होने कैम्प भी ढ़ूँढ़ निकाले, जिन लोगो का जिक्र हम कर रहे थे, उनको भी ढ़ूँढ़ निकाला तो ज़ाहिर हैं ये सब लोग इनकी जानकारी में थे और जानकर झूठ बोला जा रहा था. वज़ीरे आज़म, सदर के स्तर पर झूठ बोला जा रहा था. असल में यही मुद्दा है. ये नहीं कि उन्होंने मना किया और फिर अब वो कार्रवाही कर रहे हैं. उन्होने मना नहीं किया, और अभी भी जानबूझकर झूठ बोल रहे हैं. ये जानते हुऐ कि लश्कर यहाँ हैं, लश्कर भारत के खिलाफ अभियान चला रहा है और इस कार्रवाई में लश्कर भी शामिल है. लश्कर के लोग इस षणयंत्र में शामिल हैं, अगर इस षण्यंत्र में शामिल नहीं होते तो क्यों इस बात से इंकार करते कि हमारा कोई हाथ नही है.

प्रश्न- लेकिन अब जब अमेरिका के दबाव में ही सही पाक ने कुछ कार्रवाई शुरू की है तो क्या आपको लगता हैं कि आतंकवादियों पर वाकई कोई रोक लग पायेगी?
अजय साहनी
- देखिये ये दबाव पहले भी आया हैं और ये जो कार्रवाईयां जो आप देख रहे हैं ये तो पहले भी हुई हैं. २००२ के बाद ये होती रही हैं, जब भी दवाव बढ़ता हैं वो किसी को नजरबंद कर लेते हैं किसी को किसी गेस्ट हाउस में पकड़ के रखते हैं, सौ पचास को जेलों में डाल देते हैं. लेकिन उसके बाद पूछिये कि इनमें से भी एक को इन्होंने सजा दी है? या इनकी गतिविधियां रुकवाईं? उल्टा आप ये देखेंगे कि लश्करे-ए-तैयबा को तथाकथित रूप से प्रतिबंधित करके उसी संस्था को जमात़–उद-दावा के नाम से सरकार से पता नही कितना करोड़ रुपया मिला था और दुनिया से उन्होंने जितना रुपया लिया था कश्मीर में आये भूकंप के बाद रिलीफ के नाम पर जमात-उद-दावा को दे दिया. जो सबसे खतरनाक संस्था आपके देश में है, उसी से सरकार काम करवा रही है तो कोई तालमेल तो जरूर है उनके बीच में. ये सब दिखाने की चीजें हैं. इसका एक निष्कर्ष निकलता है कि अगर दबाव कम नहीं हुआ तो मजबूरन ये कुछ करते रहेंगे, इनको करना पड़ेगा. लेकिन ये है अंग्रेजी में जिस तरह कहते हैं कि they are minimal satisfier, कम से कम जो कर सकते हैं वो करें, ज्यादा से ज्यादा नही करें. मजबूरन जितना कम से कम उनसे कराया जायेगा, उतना वो कर देंगे. जहाँ उनको जगह मिली, बहाना मिला, वो हट जायेंगे.

प्रश्न- पाकिस्तान के इस रवैये के बाद भारत विरोधी आतंकवादी संगठन पर किस तरह लगाम लगाई जा सकती हैं, या ये वैसे ही चलता रहेगा?
अजय साहनी- देखिये जब तक आप कहीं ना कहीं से लग़ाम लेके आयेंगे, तब लगायेंगे ना, आपके हाथ में कोई औजार तो है ही नहीं लग़ाम लगाने का. ये चीखते रहना कि हम उनके ऊपर बमबारी कर देंगे, हम जंग कर देंगे, ये सब तो होने वाला नहीं हैं वो भी परमाणु (nuclear) देश हैं, आप भी परमाणु देश हैं, इतनी तो हिम्मत हमारी है नहीं. हिम्मत तो छोड़िये, क्षमता भी नही है। क्षमता की बात पहले आती हैं, हिम्मत बाद में आती हैं क्योंकि क्षमता के बगैर हिम्मत बेबकूफी़ होती है. अब एक ही रास्ता बचता है COVERT OPERATION (गुप्त राजनीतिक और असैनिक लड़ाई) का. वो इन नेताओं ने दशकों से खत्म करके रखी है, एजेंसियों को बिल्कुल कह दिया है कि आप कुछ नहीं करें, यह आपका काम नहीं हैं, आप यहाँ बैठ कर केवल सूचनाएं इकट्ठा करिए.
प्रश्न- ये जो बताया जाता हैं कि 1977 में रॉ (RAW) के पास इतनी क्षमता थी कि जुल्फिकार अली भुट्टो को जेल से निकालकर भारत तक का पहुचाने का plan उसने दिया था सरकार को. आज वहीं पर दाऊद रह रहा हैं, भारत के खिलाफ सबकुछ कर रहा हैं और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
अजय साहनी- आप जानते हैं कि 1977 से ही रॉ की सारी क्षमतायें खत्म कर दी गई। मोरारजी देसाई के जमाने में RAW की क्षमता को नेस्तनाबूत कर दिया गया. ये तभी से सिलसिला शुरू हुआ था और किसी सरकार ने इस सिलसिले को उल्टा मोड़ने की कोशिश नहीं की. किसी सरकार ने नहीं कहा कि भई बहुत हो गया, अब वापिस अपनी क्षमता बनाइये. बिना राजनीतिक अनुमति के कोई भी एजेंसी कुछ नहीं कर सकती.

प्रश्न- लेकिन राजनीतिक अनुमति क्यों नहीं मिलती जबकि हर आतंकवादी हमले के बाद राजनीतिज्ञ पाकिस्तान को सबक सिखाने की धमकी देते रहे.
अजय साहनी- वो सिर्फ हमारे नेता आपको बता सकते हैं. वो राजनीतिक अनुमति इसलिए नही है क्योंकि हमारे नेताओ में सुरक्षा की कोई समझ ही नही है. कोई दूरगामी सोच ही नही है, जो अपने देश में कार्यवाही करने की क्षमता नहीं रखते वो किसी और देश में कार्यवाही करने का क्या गुमान रखेंगे. उनको समझ ही नहीं है.

प्रश्न- तो आपको क्या लगता हैं क्या वाकई में नेताओ में क्षमता नही हैं, रक्षा संस्थानों में क्षमता हैं लेकिन क्षमता को बनाया नहीं गया?

अजय साहनी- देखिये आप संसाधन नही देंगे और आदेश नही देंगे तो सुरक्षा एजंसियां कुछ नही कर पायेगीं.

प्रश्न- तो आपको क्या लगता हैं ये जो आतंकवाद का हमला जिस ढंग से मुम्बई में हुआ और जो पहले भी होता रहा हैं ये आगे भी लगातार यूँ ही चलता रहेगा?अजय साहनी- जब तक इसका आप कुछ हल नहीं निकालेंगे तब तक चलता रहेगा, मुझे तो हैरत ये होती है कि और ऐसे हमलें क्यों नही होते, साल में दो चार ही क्यों होते हैं. जहाँ तक भारत का सुरक्षा तंत्र है, उसमें इनको रोकने की कोई खास चिन्ता नहीं है. अगर रोज ऐसे ही हादसा हो तब भी कुछ नहीं हो पायेगा। तो ये ही बात रह गई कि वो हम पर हमला नहीं करवा पा रहे हैं. उनमें इतनी क्षमता नही है, वरना यहाँ तो आये दिन हो, आप किस जगह रोक लेंगे, आप बताइये, आप मुम्बई में रोक नहीं सकते, आप दिल्ली में नहीं रोक सकते, हर जगह पर यह हो गया है.

प्रश्न- एक तरफ भारत और अमेरिका पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है और उसी दबाव में पाकिस्तान सरकार कार्रवाही भी कर रही हैं. लेकिन दूसरी तरफ जिस ढंग से पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने ज़रदारी सरकार के खिलाफ हमला शुरू कर दिया, ऐसी स्थिति में क्या लगता है कि पाकिस्तान का वजू़द खतरे में आ गया है और वो एक तरह से बिखरने के कगार पर है?

अजय साहनी- ये कोई नई चीज नही है, १९८०-१९९० के बीच कई रिपोर्ट ऐसी निकलीं थीं. ये २००१ के पहले की बात हैं ०९/११ के पहले की बात है, जो हालात आज पैदा हुऐ हैं उससे पहले की बात हैं. तकरीबन पूरी दुनिया में जितने भी इस चीज के अनुमान लगाये गये हैं, उनमें सबमें ये यही एक ही निष्कर्ष था कि पाकिस्तान जिस हाल में है उस हाल में नहीं रह सकता, वो तरक्की नहीं कर सकता, उसके अन्दरूनी विरोधाभास उसे एक आंतरिक एनार्की में ले जायेंगे और इसके टुकड़े हो जायेंगे. ये असलियत पाकिस्तान की पहले से ज़ाहिर थी और ये जो इसके रूझान हैं वो पिछले दस साल में, बारह साल में बढ़े हैं, घटे नहीं हैं. तो मेरे हिसाब से पाकिस्तान का कोई भविष्य नही है. सवाल ये हैं कि ये कब टूटेगा और किस तरह से टूटेगा और यही मैं बार- बार कहता हूँ कि ये देश तो बर्बाद है ही, दुनिया को अब ये सोचना चाहिये कि इस बर्बादी को किस दिशा में ले जाया जाये. पसंद यह नही है कि इसको आबाद कर दिया जाये. अमेरिका कोई दस-बीस बिलियन डॉलर इनको दे देगा तो ये सब ठीक हो जायेंगे, ये नहीं हो सकता, ये तो बर्बाद होंगे ही होंगे.

अब सवाल ये हैं कि इसकी बर्बादी किस दिशा में ली जायेगी. हमारी, अमेरिका की, या अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जो नीति है उसको देखना चाहिये कि अगर पाकिस्तान टूटता है तो वो किस तरह से टूटे. हमें यह देखना होगा कि वह तालिबान के हाथ में ना जाये. अगर आपको लगता है कि वर्तमान सरकार सही दिशा में नहीं जा रही है पूरा समर्थन हटा दीजिये, पाकिस्तान की आवाम में बाकी जो जमातें हैं, उनमें लोग ढूढिये जो पाकिस्तान को या पाकिस्तान के किसी भी हिस्से को सही दिशा दे सकें, बलूचिस्तान को सही दिशा दे सकें, बिल्कुल सही दिशा दे सकें. नार्थ वेस्ट फ्रण्टियर को नई दिशा दे सके, पंजाब को छोड़ दीजिये.

प्रश्न- यानि की ले देके एक पूरा निष्कर्ष ये निकल रहा है कि भारत के सामने एकमात्र विकल्प है कि हम अपनी agencies को मजबूत करें और पाकिस्तान में Covert Operation शुरू करें?
अजय साहनी- बेशक. और कोवर्ट आपरेशन से मेरा आशय है कि यह आपरेशन हर मायने में हो. ऐसे अभियान हिंसक नहीं होते. ये राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तीनों ही स्तरों पर चलाए जाते हैं. ये लंबे समय के आपरेशन होते हैं और इनका दायरा विस्तृत होता है. लोग समझते हैं कि कोवर्ट आपरेशन का मतलब सिर्फ किसी को गुपचुप तरीके से ठिकाने लगा देना या मार देना. ऐसा बिल्कुल नहीं है.

प्रश्न- एक आखिरी सवाल कि इस पूरी स्थिती में जो दबाब बना रहे हैं पाकिस्तान के ऊपर, अब क्या लगता हैं कि कश्मीर में जो आतकवादी सक्रिय थे उसपे कहीं ना कहीं कुछ समय के लिए विराम लगा है?

अजय साहनी- हां, लेकिन अब आतंकवाद कश्मीर से निकलकर पूरे देश में फैल चुका है. यह सही है कि दबाव में पाकिस्तान ने कश्मीर में अपनी योजनाओं को थोड़ा ढीला किया और कश्मीरी भी आतंकवाद से तंग आ चुके थे जिसका नतीजा इस चुनाव में दिखाई दे रहा है. लेकिन यह भी सच है कि अब वे कश्मीर से निकलकर पूरे देश में फैल चुके हैं.

(अजय साहनी से बात पर आधारित)

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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.

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