सिक्किम की खूबसूरती के चर्चे तो आम हैं. लेकिन यहां हम जिक्र कर रहे हैं उस जगह का जिसे सिक्किम के सबसे खूबसूरत गांव के रूप में ख्याति हासिल है. इस गांव का नाम है लाचुंग. इसे यह दर्जा दिया था ब्रिटिश घुमक्कड़ जोसेफ डॉल्टन हुकर ने 1855 में प्रकाशित हुए द हिमालयन जर्नल में. लेकिन जोसेफ डाल्टन के उस तमगे के बिना भी यह गांव दिलकश है. यह उत्तर सिक्किम में चीन की सीमा के बहुत नजदीक है. लाचुंग 9600 फुट की ऊंचाई पर लाचेन व लाचुंग नदियों के संगम पर स्थित है. ये नदियां ही आगे जाकर तीस्ता नदी में मिल जाती हैं. इतनी ऊंचाई पर ठंड तो बारहमासी होती है. लेकिन बर्फ गिरी हो तो यहां की खूबसूरती को नया ही आयाम मिल जाता है... ... जिसकी फोटो उतारकर आप अपने ड्राइंगरूम में सजा सकते हैं. इसीलिए लोग यहां सर्दी के मौसम में भी खूब आते हैं. प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा सिक्किम की खास बात यह भी है कि बर्फ गिरने पर भी उत्तर का यह इलाका उतना ही सुगम रहता है. पहुंच आसान हो तो घूमने का मजा ही मजा. बर्फ से ढकी चोटियां, झरने और चांदी सी झिलमिलाती नदियां यहां आने वाले सैलानियों को स्तब्ध कर देती हैं.
आम तौर पर लाचुंग को युमथांग घाटी के लिए बेस के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. युमथांग घाटी को पूरब का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है.
क्या करें
युमथांग जाने के अलावा भी लाचुंग में बहुत कुछ किया जा सकता है. एक अलग पहाड़ी की चोटी पर लाचुंग मोनेस्ट्री है। अद्भुत वादी में यहां ध्यान लगाने बैठें तो मानो खुद को ही भूल जाएं। लगभग 12 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित न्यिंगमापा बौद्धों की इस मोनेस्ट्री की स्थापना 1806 में हुई थी। इसके अलावा लाचुंग में हथकरघा केंद्र है जहां स्थानीय हस्तशिल्प का जायजा लिया जा सकता है. पास ही शिंगबा रोडोडेंड्रन (बुरांश) अभयारण्य है. सात-आठ हजार फुट से ऊपर की ऊंचाई वाले हिमालयी पेड़ों को रंग देने वाले बुरांश के पेड़ों को यह बेहद नजदीक से महसूस किया जा सकता है. यहां रोडोडेंड्रन की लगभग 25 तरह की किस्में हैं. नेपाली, लेपचा और भूटिया यहां के मूल निवासी हैं. उनकी संस्कृति से मेल मिलाप का भी खूबसूरत मौका यहां मिलता है. कंचनजंघा नेशनल पार्क भी इसी इलाके में है. युमथांग से आगे युमे-सेमदोंग तक जाया जा सकता है। वह सड़क का आखिरी सिरा है। वहाँ जीरो प्वाइंट 15,700 फुट से ऊपर है. उस ऊंचाई पर खड़े होकर, जहां हवा भी थोड़ी झीनी हो जाती है, आगे का नजारा देखना एक दुर्लभ अवसर है.
कब-कैसे-कहां
लाचुंग जाने का सर्वश्रेष्ठ समय अक्टूबर से मई तक है. अप्रैल-मई में यह घाटी फूलों से लकदक दिखाई देगी तो जनवरी-फरवरी में बर्फ से आच्छादित. हर वक्त की अलग खूबसूरती है.
लाचुंग सिक्किम की राजधानी गंगटोक से 117 किलोमीटर दूर है. गंगटोक से यह रास्ता जीप में पांच घंटे में तय किया जा सकता है. लाचुंग से युमथांग घाटी 24 किलोमीटर आगे है. युमथांग तक जीपें जाती हैं. रास्ता फोदोंग, मंगन, सिंघिक व चुंगथांग होते हुए जाता है. जीपें गंगटोक से मिल जाती हैं. ध्यान रहे कि सिक्किम में बाहर से आने वाले जीप-कार आगे का सफर तय नहीं कर सकते. इसलिए वाहन का जुगाड़ स्थानीय स्तर पर ही करना होगा.भारत-चीन के बीच सीमा व्यापार शुरू होने के बाद से इस इलाके में सैलानियों की आवाजाही भी बढ़ी है. इससे पहले 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्जे से पहले भी लाचुंग सिक्किम व तिब्बत के बीच व्यापारिक चौकी का काम करता था. बाद में यह इलाका लंबे समय तक आम लोगों के लिए बंद रहा. अब सीमा पर हालात सामान्य होने के साथ ही सैलानी यहां फिर से जाने लगे हैं. लिहाजा यहां कई होटल भी बने हैं. सस्ते व महंगे, दोनों तरह के होटल मिल जाएंगे. होटलों की बुकिंग गंगटोक से ही करा लें तो बेहतर रहेगा.
सर्दियों में सिक्किम
सिक्किम बाकी हिमालयी राज्यों की तुलना में ज्यादा शांत है. हर साल गंगटोक में दिसंबर में फूड एंड कल्चर फेस्टिवल होता है. जनवरी में मकर संक्रांति को यहां माघे संक्रांति के रूप में मनाया जाता है. तीस्ता व रिंगित नदियों के संगम पर यहां बड़ा मेला लगता है जिसमें बडी संख्या में स्थानीय लोग व सैलानी शामिल होते हैं. इसके अलावा अलग-अलग बौद्ध मठों के भी अपने-अपने आकर्षक धार्मिक आयोजन होते हैं.
(दैनिक जागरण से साभार)
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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.
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