आप क्या खाते पीते हो? आप ऐसी चीज खाते-पीते हो जिससे बुद्धि विनष्ट हो जाय और आपको उन्माद-प्रमाद में घसीट ले जाय? आप अपेय चीजों का पान करेंगे तो आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो जायेगी । भगवान का चरणोदक या शुद्ध गंगाजल पियेंगे तो आपके जीवन में पवित्रता आयेगी । इस बात पर भी ध्यान रखना जरूरी है कि जिस जल से स्नान करते हो वह पवित्र तो है न?
आप जो पदार्थ भोजन में लेते हो वे पूरे शुद्ध होने चाहिए। पाँच कारणों से भोजन अशुद्ध होता हैः
# अर्थदोषः जिस धन से, जिस कमाई से अन्न खरीदा गया हो वह धन, वह कमाई ईमानदारी की हो । असत्य आचरण द्वारा की गई कमाई से, किसी निरपराध को कष्ट देकर, पीड़ा देकर की गई कमाई से तथा राजा, वेश्या, कसाई, चोर के धन से प्राप्त अन्न दूषित है । इससे मन शुद्ध नहीं रहता ।
# निमित्त दोषः आपके लिए भोजन बनाने वाला व्यक्ति कैसा है? भोजन बनाने वाले व्यक्ति के संस्कार और स्वभाव भोजन में भी उतर आते हैं । इसलिए भोजन बनाने वाला व्यक्ति पवित्र, सदाचारी, सुहृद, सेवाभावी, सत्यनिष्ठ हो यह जरूरी है ।
पवित्र व्यक्ति के हाथों से बना हुआ भोजन भी कुत्ता, कौवा, चींटी आदि के द्वारा छुआ हुआ हो तो वह भोजन अपवित्र है।
# स्थान दोषः भोजन जहाँ बनाया जाय वह स्थान भी शांत, स्वच्छ और पवित्र परमाणुओं से युक्त होना चाहिए । जहाँ बार-बार कलह होता हो वह स्थान अपवित्र है । स्मशान, मल-मूत्रत्याग का स्थान, कोई कचहरी, अस्पताल आदि स्थानों के बिल्कुल निकट बनाया हुआ भोजन अपवित्र है। वहाँ बैठकर भोजन करना भी ग्लानिप्रद है ।
# जाति दोषः भोजन उन्ही पदार्थों से बनना चाहिए जो सात्त्विक हों । दूध, घी, चावल, आटा, मूँग, लौकी, परवल, करेला, भाजी आदि सात्त्विक पदार्थ हैं । इनसे निर्मित भोजन सात्त्विक बनेगा । इससे विपरीत, तीखे, खट्टे, चटपटे, अधिक नमकीन, मिठाईयाँ आदि पदार्थों से निर्मित भोजन रजोगुण बढ़ाता है । लहसुन, प्याज, मांस-मछली, अंडे आदि जाति से ही अपवित्र हैं । उनसे परहेज करना चाहिए नहीं तो अशांति, रोग और चिन्ताएँ बढ़ेंगी ।
# संस्कार दोषः भोजन बनाने के लिए अच्छे, शुद्ध, पवित्र पदार्थों को लिया जाये किन्तु यदि उनके ऊपर विपरीत संस्कार किया जाये – जैसे पदार्थों को तला जाये, आथा दिया जाये, भोजन तैयार करके तीन घंटे से ज्यादा समय रखकर खाया जाये तो ऐसा भोजन रजो-तमोगुण पैदा करनेवाला हो जाता है।
विरुद्ध पदार्थों को एक साथ लेना भी हानिकारक है जैसे कि दूध पीकर ऊपर से चटपटे आदि पदार्थ खाना । दूध के आगे पीछे प्याज, दही आदि लेना अशुद्ध भी माना जाता है और उससे चमड़ी के रोग, कोढ़ आदि भी होते हैं । ऐसा विरुद्ध आहार स्वास्थय के लिए हानिकारक है ।
खाने पीने के बारे में एक सीधी-सादी समझ यह भी है कि जो चीज आप भगवान को भोग लगा सकते हो, सदगुरु को अर्पण कर सकते हो वह चीज खाने योग्य है और जो चीज भगवान, सदगुरु को अर्पण करने में संकोच महसूस करते हो वह चीज खानापीना नहीं चाहिए । एक बार भोजन करने के बाद तीन घण्टे से पहले फल को छोड़ कर और कोई अन्नादि खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।
खान-पान का अच्छा ध्यान रखने से आपमें स्वाभाविक ही सत्त्वगुण का उदय हो जायेगा। जैसा अन्न वैसा मन । इस लोकोक्ति के अनुसार सदुर्गुण एवं दुराचारों से मुक्त होकर सरलता और शीघ्रता से दैवी सम्पदा कि वृद्धि कर पाओगे ।
— साभार वैदेही शर्मा
------------------------------------------------------ कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.
आप जो पदार्थ भोजन में लेते हो वे पूरे शुद्ध होने चाहिए। पाँच कारणों से भोजन अशुद्ध होता हैः
# अर्थदोषः जिस धन से, जिस कमाई से अन्न खरीदा गया हो वह धन, वह कमाई ईमानदारी की हो । असत्य आचरण द्वारा की गई कमाई से, किसी निरपराध को कष्ट देकर, पीड़ा देकर की गई कमाई से तथा राजा, वेश्या, कसाई, चोर के धन से प्राप्त अन्न दूषित है । इससे मन शुद्ध नहीं रहता ।
# निमित्त दोषः आपके लिए भोजन बनाने वाला व्यक्ति कैसा है? भोजन बनाने वाले व्यक्ति के संस्कार और स्वभाव भोजन में भी उतर आते हैं । इसलिए भोजन बनाने वाला व्यक्ति पवित्र, सदाचारी, सुहृद, सेवाभावी, सत्यनिष्ठ हो यह जरूरी है ।
पवित्र व्यक्ति के हाथों से बना हुआ भोजन भी कुत्ता, कौवा, चींटी आदि के द्वारा छुआ हुआ हो तो वह भोजन अपवित्र है।
# स्थान दोषः भोजन जहाँ बनाया जाय वह स्थान भी शांत, स्वच्छ और पवित्र परमाणुओं से युक्त होना चाहिए । जहाँ बार-बार कलह होता हो वह स्थान अपवित्र है । स्मशान, मल-मूत्रत्याग का स्थान, कोई कचहरी, अस्पताल आदि स्थानों के बिल्कुल निकट बनाया हुआ भोजन अपवित्र है। वहाँ बैठकर भोजन करना भी ग्लानिप्रद है ।
# जाति दोषः भोजन उन्ही पदार्थों से बनना चाहिए जो सात्त्विक हों । दूध, घी, चावल, आटा, मूँग, लौकी, परवल, करेला, भाजी आदि सात्त्विक पदार्थ हैं । इनसे निर्मित भोजन सात्त्विक बनेगा । इससे विपरीत, तीखे, खट्टे, चटपटे, अधिक नमकीन, मिठाईयाँ आदि पदार्थों से निर्मित भोजन रजोगुण बढ़ाता है । लहसुन, प्याज, मांस-मछली, अंडे आदि जाति से ही अपवित्र हैं । उनसे परहेज करना चाहिए नहीं तो अशांति, रोग और चिन्ताएँ बढ़ेंगी ।
# संस्कार दोषः भोजन बनाने के लिए अच्छे, शुद्ध, पवित्र पदार्थों को लिया जाये किन्तु यदि उनके ऊपर विपरीत संस्कार किया जाये – जैसे पदार्थों को तला जाये, आथा दिया जाये, भोजन तैयार करके तीन घंटे से ज्यादा समय रखकर खाया जाये तो ऐसा भोजन रजो-तमोगुण पैदा करनेवाला हो जाता है।
विरुद्ध पदार्थों को एक साथ लेना भी हानिकारक है जैसे कि दूध पीकर ऊपर से चटपटे आदि पदार्थ खाना । दूध के आगे पीछे प्याज, दही आदि लेना अशुद्ध भी माना जाता है और उससे चमड़ी के रोग, कोढ़ आदि भी होते हैं । ऐसा विरुद्ध आहार स्वास्थय के लिए हानिकारक है ।
खाने पीने के बारे में एक सीधी-सादी समझ यह भी है कि जो चीज आप भगवान को भोग लगा सकते हो, सदगुरु को अर्पण कर सकते हो वह चीज खाने योग्य है और जो चीज भगवान, सदगुरु को अर्पण करने में संकोच महसूस करते हो वह चीज खानापीना नहीं चाहिए । एक बार भोजन करने के बाद तीन घण्टे से पहले फल को छोड़ कर और कोई अन्नादि खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।
खान-पान का अच्छा ध्यान रखने से आपमें स्वाभाविक ही सत्त्वगुण का उदय हो जायेगा। जैसा अन्न वैसा मन । इस लोकोक्ति के अनुसार सदुर्गुण एवं दुराचारों से मुक्त होकर सरलता और शीघ्रता से दैवी सम्पदा कि वृद्धि कर पाओगे ।
— साभार वैदेही शर्मा
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so nice.
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