1929 में दार्जीलिंग के कर्सियांग में जन्में कानू सान्याल अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटे हैं. पिता आनंद गोविंद सान्याल कर्सियांग के कोर्ट में पदस्थ थे. कानू सान्याल ने कर्सियांग के ही एमई स्कूल से 1946 में मैट्रिक की अपनी पढ़ाई पूरी की. बाद में इंटर की पढाई के लिए उन्होंने जलपाईगुड़ी कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. उसके बाद उन्हें दार्जीलिंग के ही कलिंगपोंग कोर्ट में राजस्व क्लर्क की नौकरी मिली. लेकिन कुछ ही दिनों बाद बंगाल के मुख्यमंत्री विधान चंद्र राय को काला झंडा दिखाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में रहते हुए उनकी मुलाकात चारु मजुमदार से हुई. जब कानू सान्याल जेल से बाहर आए तो उन्होंने पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ली. 1964 में पार्टी टूटने के बाद उन्होंने माकपा के साथ रहना पसंद किया. 1967 में कानू सान्याल ने दार्जिलिंग के नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की.
अपने जीवन के लगभग 14 साल कानू सान्याल ने जेल में गुजारे. इन दिनों वे भाकपा माले के महासचिव के बतौर सक्रिय हैं और नक्सलबाड़ी से लगे हुए हाथीघिसा गांव में रहते हैं.
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" मुझे अभी तक खेद है इस बात का कि रामनारायण उपाध्याय यूपी का सेक्रेटरी था. उन्होंने सही रूप से बोला था कि माने शुरु से अंत तक आपका लाईन गलत है, मार्क्सवाद विरोधी है. I supported you लेकिन बोलने का हिम्मत नहीं आया." - कानू सान्याल.
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नक्सल आंदोलन के जनक कहे जाने वाले कानू सान्याल इन दिनों बीमार रहते हैं. कई परेशानियां हैं. कान से सुनाई कम पड़ता है और आंखों की रोशनी भी कम हो रही है. सबसे बड़ी बीमारी तो बुढ़ापा है. लेकिन नहीं. 24 मई 1967 को जिस आंदोलन की आग उन्होंने जलाई थी, वो आग आज भी उनके भीतर धधकती रहती है. यही कारण है कि इस उम्र में भी वे गांव-गांव जाते हैं, बैठक करते हैं, सभाएं लेते हैं. दार्जीलिंग के नक्सलबाड़ी से लगे हुए एक छोटे से गांव हाथीघिसा में अपने एक कमरे वाले मिट्टी के घर में रहने वाले कानू सान्याल की नज़र बस्तर से लेकर काठमांडू तक बनी रहती है. हर खबर से बाखबर !
उनकी राय है कि भारत में जो सशस्त्र आंदोलन चल रहा है, उसमें जनता को गोलबंद करने की जरुरत है. अव्वल तो वे इसे सशस्त्र आंदोलन ही नहीं मानते. छत्तीसगढ़, झारखंड या आंध्र प्रदेश में सशस्त्र आंदोलन के नाम पर जो कुछ चल रहा है, वे इसे “आतंकवाद” की संज्ञा देते हैं. वे नक्सलबाड़ी आंदोलन को भी माओवाद से जोड़े जाने के खिलाफ हैं. वे साफ कहते हैं- There is no existence of Maoism. पिछले दिनों आलोक प्रकाश पुतुल ने उनसे लंबी बातचीत की. यहां हम बिना किसी संपादन के अविकल रुप से वह बातचीत प्रस्तुत कर रहे हैं.
• नक्सल आंदोलन शुरु हुए 40 साल हो गए. आप लोगों ने नक्सल आंदोलन की शुरुआत की थी, उसके बाद माओइस्ट मूवमेंट पूरे देश भर में फैला. इसकी उपलब्धि क्या है?
पहले तो बात ये है कि माओवादी बोल के हम लोग नहीं सोचते हैं. हम लोग बोलते हैं Marxism, Leninism, thoughts of Mao मार्क्सवादी, लेनिनवादी विचार और माओ का चिंतन करना, विचार करना. खुद माओ ज़ेडांग अपने आप को माओवादी नहीं मानते थे. वो खुद ही Marxism, Leninism को मानते थे. इसलिए नक्सलबाड़ी में जो संग्राम शुरु हुआ था वो संग्राम Marxism, Leninism के आधार पर था. इसलिए इसका माओवाद से कोई लेना देना नहीं है.
मैं ये कह सकता हूं कि There is no existence of Maoism. Because Mao did not agree with that. माओ खुद कहते थे कि मुझे अगर सिर्फ टीचर कहा जाए then I would be glad. तो जो उनको माओवादी विचार कहते हैं मैं कहता हूं कि it’s a contribution of Marxism and Leninism. ये मेरा कहना है. तो ये पहली बात का जवाब मिला.
1967 में एक उपलब्धि तो है कि 1967 में नक्सलबाड़ी में जो संघर्ष शुरु हुआ था. ये संघर्ष लंबे दिन तक प्रक्रिया के अंदर में था. उसका पहले भी भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में सीपीआई के नेतृत्व में, जब मैं सीपीआई में था 1950 में; तो उस समय तेलंगाना का संघर्ष शुरु हुआ था. तेलंगाना का संघर्ष लंबे दिन तक चला और 1950-51 में जा के ये struggle के प्रति सीपीआई नेताओं ने betray किया, economic betrayal किया. Using the name of comrade Stalin. क्योंकि यहां से कुछ नेता लोग गए थे स्टालिन से मुलाकात करने के लिए. जो सलाह उन्होंने दी थी, वो सलाह हमारे कामरेडों के सामने सही रूप से पेश नहीं किया गया. उन लोगों ने सिर्फ inference draw किया कि स्टालिन बोला है कि ये struggle withdraw करना ही ठीक है. But subsequent days में जब वो सब कागजात हम लोगों को मिलने लगा तब we came to understand that our understanding that the CPI leadership betrayed the struggle ये सही साबित हुआ.
स्टालिन कहीं भी withdraw का बात नहीं बोला था. बोला था, you act according to the situation. हम जिस स्थिति में हैं उस स्थिति को आप और कितना दूर तक आगे बढ़ा सकते हैं. ये आपको तय करना है, काहे कि मैं इतना दूरी से नहीं बता सकता हूं.
Naturally 1967 में जो struggle शुरु हुआ था ये struggle भी वही था, 1950s के तेलंगाना के failure का जो शिक्षा उसके पहले भी, उसके बाद तेवागा संग्राम के बाद. उसके समय भी बिहार में जो किसान आंदोलन हुई थी, उन सभी से शिक्षा लेकर हम लोगों ने इस निष्कर्ष पर पहुँचा था कि peasant movement को अगर चलाना है तो उसके प्रति सरकार क्या रुख अपनाएंगे, उसी के उपर निर्भर होता है. किसान या कम्युनिस्ट पार्टी को कौन सा रास्ता लेना है.
एक बात तो तय है कि जनता ही केवल देश का शक्ति है. वो जनता अगर आपको साथ ना दे तो आप आगे नहीं बढ़ सकते हैं. और विशेषकर के मजदूर और उनका सबसे दृढ़ सहयोगी जो है किसान, उनकी संख्या भी सबसे ज्यादा है. वो अगर उनका साथ ना दे तो ये संग्राम टिक नहीं पाएगा. इसी के आधार पर नक्सलबाड़ी में हम लोग लंबे दिन तक संघर्ष चलाए. उसको विस्तार से मुझे कहना नहीं है.
1967 में चुनाव हुए. तब तक कांग्रेस ने तीस साल पूरे भारत में अपना राज चला लिया. 47 से 30 बरस पकड़ लीजिए कि congress government in all the states ये लोग थे. तो इस समय इस विचारों में हम लोग पहुंचा कि हमें इसको लेकर किसानों को गोलबंद करके, संगठित करके संघर्ष में उतरना है.
तो उससे पहले भी हम लोगों ने देखा कि... जैसे 1950 में तेलंगाना के प्रति विश्वासघात किया था कम्यूनिस्ट पार्टी ने. फिर हमने देखा कि जब बंगाल में हमने किसान आंदोलन शुरु किया तो उस समय 1953 में पश्चिम बंगाल की विधानसभा में Land Acquisition Act जमींदारी उन्मूलन कानून आया था. उस समय हमारे एक नेता उनका नाम था बंकिम मुखर्जी उन्होंने बांबे में काम किया, यूपी में काम किया, उन्होंने बिहार में काम किया.
बंगाल में जब एक सम्मेलन में ये सवाल उठा कि इस कानून के प्रति हमारा रुख क्या होगा तो उन्होंने ये सवाल उठाया था कि कानून में जो lapses हैं. जो hole रख दिया है क्या हम लोग उसकी पूर्ति करने के लिए आंदोलन करेंगे ? ना कि हम लोग ये जो बिल पेश किया गया है, Land Acquisition बिल है उसके खिलाफ में एक विकल्प बिल हम लोग पेश करेंगे और उसके आधार पर हम लोग संग्राम शुरु करेंगे ?
It was in 1953. उस समय मेरा कमिटी जीवन चार साल था, उससे ज्यादा नहीं हुआ था. मेरा अनुभव बहुत कम था. लेकिन whatever I read from the books i.e. Lenin, stalin and these people. By then माओ का लेख भी दो चार पढ़ चुके थे. तो मुझे लगा कि बंकिम मुखर्जी ने सही रूप से बोला कि we should have a हमें एक विकल्प कानून होना चाहिए. पार्लियामेंट में ये बिल पेश करना चाहिए, जिसके आधार पर इस देश में संग्राम होना चाहिए.
उसको लेकर उस किसान सम्मेलन के अंदर कुछ विचार विमर्श तो हुआ नहीं, उनको नजरअंदाज कर दिया गया. हालांकि ये कहा जा सकता है कि बहुत पुराने नेता हैं जिनके पास मजदूर आंदोलन का अनुभव, किसान आंदोलन का अनुभव बहुत rich था लेकिन उनको नजरअंदाज कर दिया गया. उन्होंने बंगाल कांग्रेस में जब वो वाइस प्रेसिडेंट था बंगाल प्रांत में और गुप्ती रूप से कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य थे.
जब आकर मैं सोचता हूं तो मैं सोचता हूं कि उस समय ये सीपीआई पार्टी का चाहे कोई भी पार्टी हो, कांग्रेस पार्टी का या वो कोई भी पार्टी हो विशेषकर के सीपीआई जो अपने आप को मजदूर किसान के पक्ष में कहते है they had no political will. कोई राजनैतिक इच्छा ही नहीं था कि हमारे देश की जमीनों, भूमि व्यवस्था को एक आमूल परिवर्तन हम लाएंगे. ये इच्छा उनको नहीं था. ऐसे ही यहां छोटा मोटा बहुत सा आंदोलन हुआ और व्यापक रूप से आया, उभर कर आया था. किंतु उनके प्रति भी उन लोगों ने गद्दारी किया था.
Naturally ये अनुभव, rich अनुभव के अंदर में हम लोग किसानों को बताया कि हम लोग उनको पूछा था कि ये आप लोग चुनाव लड़ रहे हैं. चुनाव में अगर आप जीत जाएंगे तो क्या करेंगे. तो बोला कि प्रबोध दासगुप्ता, हरिकृष्ण कुणाल, ज्योति बासु mainly Prabodh Dasgupta was the secretary. उनसे और हरिकृष्ण कुणाल से किसान आंदोलन के नेता और मंत्री भी थे.
उन्होंने बताया कि हम लोग करेंगे, बहुत कुछ करेंगे. तो हम लोग देखा बहुत कुछ करेंगे ये बोल कर गए तो क्या-क्या करेंगे हमको बता दीजिए ? हम लोग तो यहां आंदोलन शुरु करने वाले हैं. हम लोग का मांग है किसान. आप लोग कानून का बात करते हैं हम भी कानून का बात करते हैं. 25 acre ceiling है उसके उपरांत जितना जमीन होगा, किसान का है. ये किसानों के अंदर बंटवारा होना चाहिए, ये अगर आप माने लिखित रूप से दें तो आपका साथ देंगे. हम देंगे चुनाव में.
उन लोग बोलते हैं- चुनाव तो जीतने दो आगे तब देखा जाएगा. आप जानते हैं कि भारत में उस समय 9 प्रांत में कांग्रेस खत्म हो गया था, माने सत्ता से, राज्य से उखाड़कर फेंक दिया गया था. जैसे बिहार विभिन्न जगहों में ये घटना हुई थी. तो मेरा अनुभव, जो अनुभव की बात आपने बोला. मेरा अनुभव है कि ना तो कांग्रेस, ना तो कम्यूनिस्ट पार्टी जो अपने आप को मजदूर किसान का हिमायती करती है. उनका कोई political will, will मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं. कभी भी नहीं था आज भी नहीं है.
1967 में जब संग्राम शुरु हुआ तो हम लोग उसके पहले जेल में थे. वो इंडिया चाइना बार्डर dispute के बारे में पकड़ा था.
• कौन कौन लोग थे?
बहुत लोग थे उतना नाम बोलना मुश्किल है. प्रबोध दासगुप्ता, ज्योति बसु इन लोग भी थे. I was with them in the jail.
तो उस समय उन लोग जब सत्ता में गए तो उन लोग बोलते थे कि हम लोग बोले कि आप लोग लिखित रूप से दीजिए कि आप लोग क्या-क्या करेंगे. तो हम लोग किसानों को बता दिया कि देखिए शांतिपूर्ण रूप से होगा नहीं हम लठ से, तीर धनुष से, बंदूक राइफल से लड़ नहीं सकते. तो naturally आपको तीर धनुष लेके शुरु करना होगा और बंदूक आपको अपने हाथ में लेना होगा. हम लोग ये बात सीखा करते थे कि हमारी बंदूक पुलिसों के हाथ में है, हमारी बंदूक मिलिटरी के हाथ में है. ये हमारे है, हमारे पैसा से है. पुलिस बजट में खर्चा होता है, मिलिटरी बजट में खर्चा होता है, ये हमारे पैसों का है, हम संगठित नहीं है. इसलिए बंदूक उनके हाथ में है. वो बंदूक हमारे हाथ में लेना है.
अगर आप जमीन का रक्षा काहे कि अगर यहां कि भूमि व्यवस्था को आप पलटना चाहते हैं तो ये व्यवस्था का बात आ जाता है और जब व्यवस्था का बात आ जाता है तो वो चुपचाप बैठने वाला नहीं है. वो चुपचाप नहीं बैठेगा, वो आपके उपर दबाव बनाएगा. ये तो एक लंबा कहानी है. मैं वो बात में नहीं जाना चाहूंगा.
• एक बात मैं और जानना चाहूंगा कि चारु मजूमदार ने उसी समय एक लेख लिखा था...
मैं आता हूं. उस बात पर. I will come to that point.
1962 में जब चीन भारत की .... लड़ाई हुआ था तब हम लोग पकड़े गए थे. मैं सोचता हूं कि हम लोग तब भी सही थे और अब भी सही हैं. वो असल में हम जानते हैं कि चीन भी एक गरीब देश है, पिछड़ा देश हैं जो विदेशियों के द्वारा directly नहीं indirectly शोषित हुआ है. हमारे देश में गुलामी थी इस चलते ही. we want peace between these two countries. Table talk के द्वारा लेना और देना के आधार पर इस लड़ाई का फैसला करना चाहिए. तो उस समय जवाहर लाल नेहरु हमारा देश के प्रधानमंत्री थे they didn’t act. But उसी 1964 में हम लोग release हुए, release होने के बाद तुरंत बाद हमारी पार्टी का सम्मेलन हुआ. उस समय सीपीएम नहीं सीपीआई थी. उस समय पार्टी का विभाजन नहीं हुआ था. पार्टी का विभाजन 1964 में हुआ. We joined the CPM with the hope ऐसा विश्वास था कि ये नेता लोग कम से कम गांधी लीडरशिप के विरोध में खड़ा होंगे.
लेकिन हमारा ये विचार ये साफ हो गया कि ये नेताओं ने भी खुल के सारा बात सामने नहीं रखा है. बंगाल का कमेटी में हमारी central committee ने सारा बात खुलकर नहीं रखा है. इसी वजह से हम लोग इनको सोचते थे सुधारवादी नेता reformist या संशोधनवादी नेता.
तो हम लोग उसी समय से पार्टी तो छोड़ा नहीं क्योंकि newly बना था 1964 में सीपीएम, उसमें थे. तो सीपीएम में, अंदर में revisionist leadership के विरोध में लड़ने लगे. एक तो second time imprisonment हुआ जब इंडिया चाइना उसका डर ये कि ये सीपीएम बनने के साथ ही सरकार सोचा कि they are going to build a revolutionary party. सबसे ज्यादा गिरफ्तारी हुआ था बंगाल में. बंगाल में पहला दफा गिरफ्तार हुआ था आठ आदमी जिनके अंदर में मैं भी था. तो प्रमोद दा भी उनके बीच गिरफ्तार हो गए थे. He couldn’t attend the party congress in that year. Anyhow वो सम्मेलन के बाद हम लोगों के पास ये साफ हो गया कि ये पार्टी कुछ करने वाली नहीं है.
हम लोग जेल के अंदर में जितने साथी थे, At that time I was in Behrampur central jail जो कि बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में थे. तो पहले थे हम 1962 से 1964 के बीच all political leadership of the central committee and West Bengal state committee. बाद में district leadership को हम देखा बेहरामपुर सेंट्रल जेल में where intense debate within the jail. उसी समय सितंबर महीना में आनंदबाजार पत्रिका में एक खबर आया कि चारु मजूमदार एक पत्र, एक लेख लिखा है जिसमें armed struggle का आह्वान किया है.
तो उस समय उन्होंने चार ऐसा leaflet लिखे थे. ये चार leaflet का उस समय निष्कर्ष निकला कि समूचा पार्टी, सीपीएम लीडरशिप और बिगड़ गया हमारी दार्जिलिंग district के साथियों के ऊपर. जबकि चारु मजूमदार हमारी दार्जिलिंग जिले के नहीं थे. तो हम लोगों ने वो लेख पढ़ा जेल में तो we deferred with it.
तब दो लड़ाईयां लड़ीं- एक है revisionist leadership के खिलाफ और एक है उतावलापन के खिलाफ. फिर हम 66 में जेल से रिहा होकर आए और आने के बाद उनसे बातचीत हुई. हम लोग बोला- देखो we agree with you आपके साथ सहमति रखते हैं कि armed struggle करना है. लेकिन इसके लिए जनता तो आपके साथ में होना चाहिए.
आप mass organization को आप बताएं हैं कि ये revisionism है mass revisionism इसके साथ जाना चाहिए. अब वो लोग कहां से जान पाएगा primary school पढ़ने के बाद ही तो graduate होता है. हां primary organization को आप छोड़ दीजिएगा तो आप जनता से कट जाइएगा. और छोटे मोटे दस्ते कायम कीजिए आप, जमींदार को मारिए, capitalists को मारिए, पुलिस को मारिए. ये बात आपने लिखा है, लिखा तो नहीं है आपने, बोल रहे हैं. You are advocating that line. ये जो बोलने के बहुत दिन बाद में वो बात लिखा था.
ये बोलने के बाद में हम लोग बोले कि we don’t agree with you on this point. फिर भी revisionism एक main खतरा है उसके खिलाफ लड़ना है. Reformism main खतरा है पार्टी के अंदर ये शासक वर्ग को बचा के रखता है. आप जो बताते हैं, इससे हम लोगों को नुकसान पहुँचेगा जनता को अगर हम लोग छोड़ देंगे. तो उस समय we agreed to differ हमारे अंदर भी एक मतभेद है.
तो हम लोग बोला कि हम लोग एक साथ लड़ेंगे revisionism के खिलाफ में. और हम लोग दो जगह चुनाव कर लें. आप अपने line को काम में लाएंगे, प्रयोग में लाएंगे. हम भी अपने जिला में दार्जिलिंग जिला में अमल में लाएंगे. ये दो किस्म की संघर्ष में हमको करना पड़ा. Left line i.e. revisionism, reformism के खिलाफ और left adventurism, terrorism के खिलाफ. क्योंकि individual को मारने से व्यवस्था खत्म नहीं होता है. एक पुलिस को मारने से.... हमारे देश में बेरोजगार है. एक पुलिस को मारने से.... आज ही अखबार में पढ़ते थे एक graduate crematorium में, जिसे हिंदी में डोम कहते हैं. तो एक ग्रेजुएट लड़का आज ही अखबार में पढ़ा था कहते थे कि हम डोम का काम करेंगे, हमको नौकरी दे दीजिए. तो such is the condition of the country. इसलिए individual आदमी को मारने से षडयंत्रकारी कायदा से मारने से व्यवस्था खत्म नहीं होती.
हां लड़ाई के मैदान में बोलिए व्यवस्था को मारने के लिए राइफल हाथ में लो, बंदूक जुगाड़ करो, बंदूक लूटो, ये अगर बोलें तो ये समझ में आता है. लेकिन क्या वास्ते बंदूक लूटेंगे, आपका कार्यक्रम होना चाहिए, मजदूर के लिए, किसान के लिए वो ही तो इस देश की संख्या है. वो ही लोग अगर इस संग्राम में नहीं रहेगा तो कैसे कर के हमारा संग्राम आगे बढ़ेगा. As a result नक्सलबाड़ी का संर्घष इसी का result है. ये दो लाइन थी............ उसके बाद में पार्टी दुनिया में ऐसा कभी भी नहीं हुआ है कि communist party बना और बनने के दो साल के अंदर में तीन टुकड़ा में बंट गया. कम्यूनिस्ट सत्यनारायण सिन्हा समझा था. परिस्थिति पार्टी के अंदर ऐसा था कि कोई विरोध नहीं कर सकता था.
मुझे अभी तक खेद है इस बात का कि रामनारायण उपाध्याय यूपी का सेक्रेटरी था. उन्होंने सही रूप से बोला था कि माने शुरु से अंत तक आपका लाईन गलत है, मार्क्सवाद विरोधी है. I supported you लेकिन बोलने का हिम्मत नहीं आया. आने के बाद जब वापस आया अपने जिले में तो रास्ता में मार देंगे, पकड़वा देंगे, कोई ठीक नहीं है. आने के बाद हम लोग सोचने लगा and the line. और ये लाइन को जब अमल में लाने लगा तो बहुत खराब नतीजा निकला. कोई आदमी बोल देता हैं, कहीं गुस्सा में आ जाएंगे तो मार देंगे, ये करेंगे वो करने से दुश्मन खत्म हो जाएगा. India is a vast country यहां पे स्टेट पावर बहुत ही मजबूत है. इसके खिलाफ में तमाम जनता का जागरण ही इनको पराजित कर सकता है. Mass armed struggle इनको पराजित कर सकता है. ये स्थिति अगर हम कायम कर सके तो. यहीं मैं इसके बारे में खत्म करता हूं.
Third वो सवाल जो कोई कोई मुझे पूछता है पत्रकार लोग, नेपाल में जो हुआ है उसके बारे में. मैं कहता हूं कि नेपाल के साथ भारत का कोई comparison नहीं है. Western Nepal, नेपाल तो बैकवर्ड है, western Nepal और backward है. एक थाना लूटने में तो वो खबर सात दिन बाद भी नहीं पहुचे काठमांडू में. और सात दिन लग जाएगा खबर पहुंचने में और सात दिन लग जाएगा वो पुलिस को बचाने के लिए. They collected rifles in that way. उनका पोजिशन वो है जो हिंदुस्तान में 1967 में यहां जो पोजीशन था. आज अगर वो चाहे तो 10 मिनट के अंदर total में ये सबडिवीजन को घेरा डाल सकेगा. दार्जिलिंग जिला के अंदर. ऐ कि रोड कंडीशन, उस समय से जो शिक्षा इन लोग लिया. हां उससे they are more powerful. Strategically they’ll surely lose the game. लेकिन concretely जब वो विचार विमर्श करेंगे लड़ाई के लिए तो उनका ताकत को भी विचार करना चाहिए. हमारी ताकत को भी उसी हालत से बढ़ाना होगा.
इसलिए मैं कहूंगा कि नेपाल का माओवादी आंदोलन के साथ I don’t consider फिर मैं repeat करता हूं कि माओवाद बोलके कोई बात नहीं है. ये सब व्यक्तिगत ख्यालात है वो बहुत खराब है. अब ये प्रचंड हैं, उनके बारे में I don’t want to comment anything. जब वो ‘ प्रचंड पथ ’ बोलते हैं तो नेपाल एक छोटा देश है. उनका अनुभव वही पथ है सारा दुनिया के आदमी के लिए, ये नहीं हो सकता at least. मैं इस बात को मानने को तैयार नहीं हूं. Let him speak it. We’ll learn from him. अब होगा नहीं वो, तो चुनाव में हिस्सा लिया. कौन कारण से लिया, क्या हालत में लिया, वो अलग बात है. I don’t want to comment on it. क्योंकि अलग देश है. उनका advice देने का अधिकार मेरा नहीं है. वो जैसे समझा वो किया. Now they’ve won. अभी वो सोचते हैं कि प्रधानमंत्री बनेंगे, कि राष्ट्रपति बनेंगे. ये सब को ले के बैठे हैं. मैं कहूंगा कि it will come, कल ही अखबार में पढ़ते थे कि we’ll build up capitalism. उन लोगों ने बताया.
I don’t want to comment. खाली इतना कहूंगा कि उनका ये बात Marxism, Leninism के साथ में मिलता जुलता नहीं है. We’ll build up socialism but a backward country must build up its productive forces to that extent from where we will go to skip over to Socialism. ये अगर बोलते तो उसमें capitalist देशों से आज हम मिलजुल के सहायता लेकर चलेंगे. वो देगा, नहीं देगा वो अलग बात है. लेकिन मिलजुल कर चलेंगे. और उसके द्वारा पूंजी उपलब्ध होगा, उसके द्वारा कारखाना बनाएंगे, विकास करेंगे, ये बात बोलना अलग है. नैचुरली what he thought, he told them that. कल ही अखबार में हम पढ़ते थे. I am learning from it, हमारे यहां पर बुद्धदेव बाबू बोल रहे है.
• बुद्धदेव बाबू ने कहा कि समाजवाद का रास्ता नहीं आ सकता.
देखिए वो correct कर दिया. ज्योति बाबू भी... he is more intelligent, Cunning revisionist, बहुत खतरापूर्ण आदमी है. लेकिन He knows marxism. इसलिए जब बुद्धदेव भट्टाचार्जी ने बोला we will build up capitalism, we support capitalism. तो ज्योति बासु बोल दिया कि नहीं ये कहना गलत है क्यों openly नहीं बोला पार्टी में बोला, आया था. ये त्रिपुरा, बंगाल, केरल इन तीन राज्य में हम लोग माने मंत्री हैं लेकिन सत्ता हमारे हाथ में नहीं है. सत्ता means entire administration, सत्ता means military, हमारे हाथ में नहीं है. इसलिए कैसे हम, यहां एक संविधान है, उस संविधान के तहत हमें काम करना होगा, how can we do it. Socialism के लिए अभी हमारा agenda में नहीं है. वो correct किया, किसको बुद्धदेव भट्टाचार्य को. He is a raw communist. इसलिए मैं कहूंगा कि ये चल रहा है बातचीत. And we are learning from it.
इसलिए माओवाद, आप जो शुरु किए थे, we don’t agree with it. हम ये बोलते हैं कि Indian revolution, Indian path में है. We’ll take lessons from Russia, we’ll take lessons from China, we’ll take lessons from the struggle of Vietnam, Laos, and Cambodia. और भी कई देशों से हम शिक्षा लेंगे. लेकिन Indian revolution will be completed in a Indian way.
वो क्या way होगा, ये हम साधारण रूप से बोल सकते हैं. मजदूर किसान को गोलबंद करो, संगठित करो, संघर्ष में, मैदान में ले चलो. And it depends on the state power. वो अगर हिंसात्मक व्यवहार करें तो हम भी हिंसात्मक रुख अपनाएंगे. That is not terrorism, पुलिस, मिलिट्री से लड़ना, that is not terrorism. Individually कोई आदमी को मार देना. Individually कोई आदमी को कुछ कर देना that is not correct. ये लाईन को थोड़ा अभी अलग रूप से इंडिया के माओवादी लोग कर रहे हैं.
थोड़ा फर्क, क्या फर्क. आज तो डकैती करने से पैसा मिलेगा तो आपको प्लेन मिल जाएगा, तोप मिल जाएगा, टैंक मिल जाएगा. अगर उसको आप छुपा सकते हैं तो काहे कि. Military is so corrupt, हमारे देश का मिलिट्री तो. कोई भी देश का, पूंजीवादी देश का, मिलिट्री बहुत corrupt होता है. हमारे देश की मिलिट्री भी बहुत corrupt है. और वो जान के लिए ये काम नहीं कर रहे हैं. वो अपने परिवार के लिए ये काम कर रहे हैं. इसलिए जब उनके उपर हमला होता है, वो भाग जाते हैं. इसलिए हम लोग बोलते हैं कि strategically they are weak. रणनीतिक रूप से ये जो दुश्मन हैं, पूंजीवादी, साम्राज्यवादी जो हैं वो दुबला है. लेकिन concretely उनको लेना होगा. Strategically we will win. क्योंकि people, यदि people को हमारे साथ रखता है तो.
तो इसलिए strategically हम लोग correct है, उन लोग weaker है. और रणनीतिक रूप से they are more powerful, we are weaker. तो हमें strategically उनको despise करना चाहिए. छोटा करना चाहिए. जैसे कोई आदमी आपको मारने आया तो अगर पहले से हम डर जाएंगे तो हमको डर के भागना पड़ेगा. अगर हम नहीं डरकर, उसका डट के सामना करें, अगर रोकें तो वो भागेगा. हम जो जितना दुबला पतला हो.
तो मेरी उपलब्धि ये है कि. आप जो सवाल कर रहे थे. मैं पहले तो नक्सलबाड़ी का रास्ता, तेलंगाना का रास्ता एकमात्र रास्ता है. लेकिन आपको जनता को गोलबंद करने के लिए आपको देश का कानून का इस्तेमाल करना होगा. You have to participate in the election, to educate the people. क्या ये एक कानून से होगा नहीं. इतने तो बड़ी बड़ी बातें हैं. कानून की क्या कमी है हमारे देश में. कुछ कमी नहीं है लेकिन कानून होने से क्या होगा उसको लागू करेगा कौन ? administration, bureaucrats वो नहीं कर रहे हैं, करेगा भी नहीं. और कानून का भी इस्तेमाल नहीं होगा. Naturally people का भी education इसके द्वारा होगा जो लोग आएंगे हमारे साथ इसलिए जो बात मेरा उपलब्धि है कि अभी Marxism, Leninism का और द्ढ़तापूर्ण रूप से पकड़ में लाना है. जैसे कि सैद्धांतिक बातों के उपर चर्चा किया जाए.
For the last several decades भारत के कम्यूनिस्ट लोग भी कम्यूनिस्ट manifesto को सच्ची रूप से पढ़ा नहीं है. 1848 में मार्क्स ने लिखा है productive forces को हर बार पूंजीपति लोग विकास करके वो अपने को जिंदा रखना चाहता है. तो आज देखिए, आज साइंस कहां गया है. तो ये विकास वो for his development. हमारे देश की जनता के लिए होता तो आदमी कम मरता. बीमारी के लिए इतना दवा निकला. पहले तो चेचक बिमारी में गांव के गांव उजड़ जाते थे. कॉलेरा से उजड़ जाता था बिहार में, बंगाल में, हमारे देश में सब जगह पर. पर आज देश में वो हालत नहीं है. सांइस और टेक्नोलॉजी ने कितनी तरक्की की है.
• आपने दादा एक बात कही अभी. आपने एक शब्द इस्तेमाल किया कि अगर जनता आपके साथ हो तो.
अगर हम उसको संगठित, गोलबंद, शिक्षित करें तो हमारा साथ देगा.
• ये जो आंध्र में, छत्तीसगढ़ में, झारखंड में ये जो हथियारबंद आंदोलन चल रहे हैं. आपके शब्दों में मार्क्सवादी, लेनिनवादी आंदोलन. इसको आप ऐसा कहते हैं क्या ?
नहीं हम कहते हैं कि ये terrorist हैं. They mainly base themselves on terror campaign पैसा से बंदूक से. ये बहुत कम जगह में दो incident हुआ है. बहुत कम जगह में. बहुत जगह के आदमी को जमा करके एक थाना में हमला करके भाग गए. खाली that is not the only source. ये लोग आदमी को धमकी देकर पैसा देकर, पैसे वाले को अदा करते हैं कि कुछ कर रहे हैं. ऐसे ही, yes in the form of armed struggle. I never condemn it. पर ऐसे, you cannot do it. In the last analysis, you will be defeated. काहे कि Terror campaign से होगा नहीं unless people are with you.
• आपको लगता है कि जो आंदोलन चल रहा है सशस्त्र आंदोलन, क्या उनको भी चुनाव के रास्ते पर आ जाना चाहिए ?
नहीं. मैं ये नहीं कहता. मैं कहता हूं कि चुनाव का रास्ता को आपको लेना मजबूर करेगा क्योंकि अब जेल के अंदर चारु मजूमदार का स्लोगन है कि जमानत मत दो, दीवार टपक कर भागो. बंगाल में we have tested it. देखा कि वो तो लड्डू भी नहीं खाएगा ना. वो हमारे साथियों को मारेगा माने we are the adventurists. हमें थोड़ा सा.... adventurism से नहीं होगा.
• आप पीछे लौट कर जब देखते हैं तो आपको लगता है कि नक्सलबाड़ी का जो आंदोलन हुआ था उसमें भी कोई adventurism था ?
नहीं. हम लोग एकदम बिल्कुल जनता के साथ थे. वहां adventurism नहीं था. उस समय पार्टी का तैयारी नहीं था. We had 29 guns. लेकिन एक भी cartridge नहीं था. चारु बाबू को दफे दफे बोलने के बावजूद वो बंदूक के लिए मसाला जो cartridge हमें मिला नहीं था. तो आप ये समझ सकते हैं जो अगर वो 29 बंदूको का cartridge हमारे पास होता तो उस समय ये पूरी नक्सलबाड़ी का संघर्ष और ज्यादा तीव्र हो जाता. We could have developed that strength. Because of that period पार्टी तैयार नहीं था हम लोग एक छोटे दस्ता के रूप में, दार्जिलिंग जिले के अंदर एक सब डिवीजन में, तहसील में जो शुरु किया था ये छोटे जगह से होगा नहीं. Maneuvering capacity होना चाहिए. माओ का लेख है, माओ के लेख को पढ़िए.
(www.ravivar.com से साभार)