अभी पांच महीने पहले जिन चंद्रशेखर राव ने अपनी ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और पार्टी के कुछ नेताओं पर आरोप लगाया था कि उन्हें और उनके परिवार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है वही कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव (केसीआर) अब तेलंगाना के नायक और आंध्र के खलनायक बनकर पूरी तरह से उभर आये हैं. कोई उन्हें नायक समझे या खलनायक लेकिन इतिहास के पन्नों पर उन्होंने वह लाइन लिख दी है जो उन्हें हैदराबाद के निजाम के बराबर ला खड़ा करता है. राजनीतिक रूप से राव अब दक्षिण की बड़ी शख्सियतों में शामिल हो गये हैं.
हैदराबाद रियासत के मद्रास प्रेसिडेन्सी में विलय के साथ ही निजामशाही का खात्मा हो गया था और तेलंगाना को भी बाद में मद्रास प्रेसिडेन्सी से अलग हुए राज्य आंध्र प्रदेश का हिस्सा बना दिया गया था. लेकिन तेलंगाना अपनी सांस्कृतिक पहचान पाने के लिए अपने अलग राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई से कभी पीछे नहीं हटा. हालांकि यह लड़ाई कमजोर और क्षीण थी और अलग तेलंगान की मांग कभी वैसी तेज नहीं हो पायी जैसी अलग आंध्र प्रदेश की मांग थी. फिर भी अलग तेलंगाना की मांग कायम बनी रही. कहते हैं व्यक्ति समय को प्रभावित नहीं करता बल्कि समय व्यक्ति का चयन करती है. राव का राजनीतिक उदय बिल्कुल इस बात को सटीक रूप से सत्यापित करता है. समय ने तेलंगाना के सवाल पर मानो चंद्रशेखर राव का वरण कर लिया था और देखते देखते राव इतिहास पुरुष हो गये.
चंद्रशेखर राव का जन्म 1954 में मेडक जिले में हुआ था जहां उनके पूर्वज कई पीढ़ी पहले आकर बस गये थे. चंद्रशेखर राव शुरू से राजनीतिक महत्वाकांक्षा के व्यक्ति नहीं थे इसलिए शुरूआती पढ़ाई लिखाई के बाद घर परिवार चलाने के लिए उन्होंने कमाई के लिए खाड़ी देशों के लिए जानेवाले लोगों का वीजा बनवाना शुरू किया. लेकिन टीडीपी के उदय ने उनके मन में राजनीतिक ललक पैदा कर दी. जिन दिनों एनटीआर आंध्र की राजनीति का समाजशास्त्र बदलने में लगे थे उन्हीं दिनों वे टीडीपी के साथ आ गये और राजनीति में हाथ आजमाने शुरू कर दिये. एनटीआर की मौत के बाद वे चंद्राबाबू के साथ हो गये. जब चंद्राबाबू दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो केसीआर कैबिनेट मंत्री बनना चाहते थे. लेकिन चंद्राबाबू ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाने की बजाय विधानसभा का डिप्टी स्पीकर बना दिया. केसीआर को यह बात नागवार गुजरी और 2001 में उन्होंने टीडीपी से किनारा कर तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन कर दिया.
पार्टी के अलग निशान के साथ ही एक पहचान और मुद्दे की जरूरत भी होती है. केसीआर ने देखा कि तेलंगाना के सवाल को फिर से सुलागाया जा सकता है जिससे पार्टी को आंध्र के हिस्से में अच्छा खासा जनाधार मिल जाएगा. राजनीतिक रूप से यह फैसला बहुत सही था क्योंकि राज्य में कांग्रेस और टीडीपी के बीच स्पेश बनाने के लिए किसी सटीक राजनीतिक मुद्दे का होना जरूरी था. केसीआर ने वही किया. उन्होंने अलग तेलंगाना की मांग उठायी. उसका नतीजा यह हुआ कि टीआरएस गठन के साथ ही एक ताकतवर पार्टी के रूप में उभरने लगी. 2004 के राज्य विधानसभा चुनावों में टीडीपी का सफाया करने के लिए कांग्रेस के नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने चंद्रशेखर राव से हाथ मिला लिया। इसका जितना फायदा कांग्रेस को हुआ उससे अधिक फायदा टीआरएस को हुआ. टीआरएस के 26 विधायक हैदराबाद पहुंच गये और 5 सांसद दिल्ली. राजशेखर रेड्डी ने चंद्रशेखर राव से वादा किया था कि वे तेलंगाना बनवाने में उन्हें हर प्रकार की मदद करेंगे और तेलंगाना किसी भी समय हकीकत में तब्दील हो सकता है. दिल्ली की सरकार में चंद्रशेखर राव को मंत्री तो बनाया गया लेकिन कांग्रेस के मन में अलग तेलंगाना को लेकर कोई गंभीर विचार नहीं था इसलिए लगातार पांच साल तक चंद्रशेखर राव को हाशिये पर रखा गया. राज्य और केन्द्र दोनों जगहों पर कांग्रेस का काम निकल चुका था और अब राव को राजनीतिक पटखनी मिल चुकी थी और सिवाय धूल झाड़ने के वे कुछ नहीं कर सकते थे.आखिरकार तंग आकर सितंबर 2006 में राव ने केन्द्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और तेलंगाना के आंदोलन को आगे बढ़ाने का निश्चय किया.
2008 में आंध्र में हुए उपचुनाव ने उन्हें एक बार फिर सफलता दी और 7 विधानसभा तथा 2 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रहे. चंद्रशेखर राव तेलंगाना में अब राजनीतिक आका के रूप में उभर चुके थे. इसका परिणाम यह हुआ कि जिन चंद्राबाबू नायडू ने कभी उन्हें राज्य में कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया था उन्हीं चंद्राबाबू ने 2009 के चुनाव में उनके साथ आ खड़े हुए और अलग तेलंगाना को अपना समर्थन दे दिया. लेकिन 2009 के राज्य विधानसभा और लोकसभा के चुनाव राव के लिए झटका साबित हुए. 2009 के चुनाव में वाईएस राजशेखर रेड्डी का जादू पूरे आंध्र में चला जिससे तेलंगाना भी अछूता नहीं रहा. टीआरएस को राज्य विधानसभा में सिर्फ 10 सीटें मिलीं. ऊपर से चंद्रशेखर राव के ऊपर टिकट बेचकर पैसा बनाने का आरोप भी लगा लेकिन करीमनगर लोकसभा सीटे से भारी अंतर से जीतने में कामयाब रहे. राव के ऊपर उन्हीं के पार्टी नेताओं ने आरोप लगाये कि पार्टी का टिकट बेचकर उन्होंने 10 करोड़ रुपये कमाए हैं. क्षोभग्रस्त राव ने अपनी ही बनायी पार्टी से 19 जून 2009 को इस्तीफा दे दिया.
इसी हताशा और निराशा के दौर में राव यह तो महसूस कर ही रहे थे कि उनके मूल मुद्दे पर लौटे बिना उनकी राजनीतिक वापसी संभव नहीं होगा. कांग्रेस के जिस नेता पर उन्होंने विश्वास कर कांग्रेस से गठजोड़ किया था वे भी अब इस दुनिया में नहीं थे और अगर राव सक्रिय नहीं होते तो कांग्रेस के कमजोर होने से जो जगह बनती वहां टीडीपी काबिज हो जाती. इसलिए राव ने पार्टी के अंदरूनी संकट और घटती राजनीतिक औकात को बढ़ाने के लिए अचानक ही आमरण अनशन का निर्णय ले लिया. ग्यारह दिन के आमरण अनशन ने न केवल आंध्र के भूगोल और राजनीतिक को हमेशा के लिए बदल दिया बल्कि चंद्रशेखर राव की निजी जिंदगी भी हमेशा हमेशा के लिए बदल गयी. अब वे तेलंगाना के जन्मदाता के तौर पर याज किये जाएंगे. आनेवाले दिनों में तेलंगाना एक हकीकत बनेगा और चंद्रशेखर राव उस हकीकत को सामने लाने वाले इतिहास पुरुष. निश्चित रूप से समय ने राव का सटीक चुनाव किया और अपना काम कर गया.
कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.
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