ये जो अपना INDIA है ना, बड़ी ही अज़ीब जगह है. जो कोई विदेशी यहाँ आता है तो नतमस्तक हो जाता है और हम सब, हम सब यानी यहाँ के निवासी, इसके मस्तक को नत करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते.
20090220
एक और रक्षा घोटाला, एक और बोफोर्स
लोकसभा चुनाव से ऐन पहले यूपीए सरकार को इसे लेकर कटघरे में खड़ा करने की कोशिशें तेज हो गई हैं. कांग्रेस के हिसाब बराबर करने के लिए वामपंथी दलों की ओर से मामले को ज्यादा तूल दिया जा रहा है.
दरअसल रक्षा मंत्रालय ने इजरायल की रक्षा उत्पाद कंपनी आईएआई से 12 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम की खरीद के करार किया है. करार पिछले साल हुआ. तब अमेरिका से परमाणु करार को लेकर कसरतें चल रही थीं. वामपंथी दल एतराज के बावजूद यूपीए सरकार को समर्थन दे रहे थे. करात ने रक्षा करार पर अंगुलियां तब भी उठाई थीं, प्रधानमंत्री को आपत्तिजनक खत लिखा था. लेकिन न जाने क्यों साल भर तक चुप रहने के बाद अब फिर खत लिखकर बवाल खड़ा कर दिया है.
करात ने एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम की खरीद के इस रक्षा सौदे में बोफोर्स से भी बड़े घोटाले की गंध महसूस की है. और प्रधानमंत्री को लिखे खत में कई आपत्तिजनक तथ्यों को सामने रखा है. मसलन जिस इजराईली कंपनी IAI के साथ करार हुआ है.वो पहले से black listed है. सीबीआई IAI के खिलाफ बराक मिसाईल सौदे में घूस देने और भ्रष्ट्राचार की जांच कर रही है. माकपा महासचिव करात ने लिखा है," भारतीय हितों की बलि चढा़कर हुआ ये सौदा चौंकाने वाला है. इजराईली कंपनी के साथ करार करने से पहले रक्षा मंत्रालय ने या तो जरूरी तैयारी नहीं की या फिर जानबूझकर आपत्तिजनक मसलों को नजरअंदाज कर दिया है."
रक्षा सौदे की जल्दीबाजी घोटाले की बू दे रही है. सबसे कच्ची बात ये है कि IAI ने Air Defense Missile System अब तक विकसित ही नही किया है जिसे खरीदने के लिए भारत ने उससे दस हजार करोड़ रूपये का सौदा कर लिया है. सिस्टम के विकसित होने के बाद ही पता लगेगा कि वो हमारी मकसद को पूरा कर पाएगा या नहीं. दूसरा सबसे आपत्तिजनक पहलू सौदे में अपने DRDO की उपेक्षा से जुड़ा है. DRDO का Advance Air Defense (AAD) मिसाइल सिस्टम विकसित पड़ा है. उसका फिल्ड टेस्ट तक पूरा हो चुका है. AAD दुश्मन के मिसाइल और एयरक्राफ्ट दोनों को नेस्तानाबूत करने की क्षमता रखता है. AAD की अदभूत क्षमता के बारे में कहा जाता है कि ये 18 किलोमीटर की ऊंचाई पर ही ब्लास्टिक मिसाइल को स्वाहा कर सकता है. जबकि IAI का सिस्टम सिर्फ दुश्मन के एयरक्राफ्ट से जुझने के लिए विकसित हो रहा है. फिर IAI के मिसाइल सिस्टम तकनीक,कीमत और आपरेशनल तैयारी के लिहाज से भी DRDO के AAD से बेहद कमजोर है.
जिस तरीके से इजरायल की कंपनी को राष्ट्रीय हितों से ऊपर उठकर मदद दी गई है उसे लेकर बोफोर्स जैसे बबाल के उठने की आशंका जताई जा रही है. राजनीति गरमाने लगी है. मसलन इजरायल की IAI के साथ हुए करार में प्रावधान है कि DRDO उससे खरीदे गए मंहगे और कमतर सिस्टम को भारतीय स्वरुप देने में मदद करेगा. जबकि सच्चाई है कि रक्षा मंत्रालय की उपेक्षा की शिकार DRDO ने उससे उन्नत और काबिल सिस्टम विकसित कर रखा है.
(www.visfot.com से साभार)
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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.
20090128
पाकिस्तान से लंबी लड़ाई की योजना बनाईये

प्रश्न- अमेरिकी दबाव के बाद पाकिस्तान ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तोएबा के खिलाफ कार्रवाई भी की है और उसके नेताओं को गिरफ्तार भी किया है. पाकिस्तान की ये कार्रवाई आतंकवादियों के खिलाफ कितना कारगर है?
अजय साहनी- दरअसल कार्रवाही करने का कोई इरादा होता तो खुद की होती. रुके ना होते कि इतना दबाव दुनिया का बढ़े तब वो हल्की सी हरकत करे. सदर से लेकर वजीरेआज़म तक जितने भी सरकार के लोग हैं, एक ही रवैया था इनका, इन्कार का. यहाँ पर लश्कर-ए-तैयबा नाम की कोई चीज ही नहीं है, कोई आतंकवादी शिविर नहीं हैं. किसी किस्म की आतंकवादी गतिविधि यहाँ से नहीं चल रही है। अगर सच्चाई मन में होती, तो वो कहते हाँ भई पता कर रहे हैं, देखते हैं. और पता क्या करते हैं, सबको मालूम है कि लश्करे-ए–तैयबा क्या है.
प्रश्न- पाक ने एक तरह से मान लिया कि है कि मुंबई पर जो आतंकी हमला हुआ वे पाकिस्तानी हैं लेकिन अब जानबूझकर झूठ बोल रहा है.
अजय साहनी- मैं पूछता हूँ कि जब इतने उच्च स्तर से खारिज़ किया जा रहा था तो चौबीस घण्टे के अन्दर- अन्दर इन्होने कैम्प भी ढ़ूँढ़ निकाले, जिन लोगो का जिक्र हम कर रहे थे, उनको भी ढ़ूँढ़ निकाला तो ज़ाहिर हैं ये सब लोग इनकी जानकारी में थे और जानकर झूठ बोला जा रहा था. वज़ीरे आज़म, सदर के स्तर पर झूठ बोला जा रहा था. असल में यही मुद्दा है. ये नहीं कि उन्होंने मना किया और फिर अब वो कार्रवाही कर रहे हैं. उन्होने मना नहीं किया, और अभी भी जानबूझकर झूठ बोल रहे हैं. ये जानते हुऐ कि लश्कर यहाँ हैं, लश्कर भारत के खिलाफ अभियान चला रहा है और इस कार्रवाई में लश्कर भी शामिल है. लश्कर के लोग इस षणयंत्र में शामिल हैं, अगर इस षण्यंत्र में शामिल नहीं होते तो क्यों इस बात से इंकार करते कि हमारा कोई हाथ नही है.
प्रश्न- लेकिन अब जब अमेरिका के दबाव में ही सही पाक ने कुछ कार्रवाई शुरू की है तो क्या आपको लगता हैं कि आतंकवादियों पर वाकई कोई रोक लग पायेगी?
अजय साहनी- देखिये ये दबाव पहले भी आया हैं और ये जो कार्रवाईयां जो आप देख रहे हैं ये तो पहले भी हुई हैं. २००२ के बाद ये होती रही हैं, जब भी दवाव बढ़ता हैं वो किसी को नजरबंद कर लेते हैं किसी को किसी गेस्ट हाउस में पकड़ के रखते हैं, सौ पचास को जेलों में डाल देते हैं. लेकिन उसके बाद पूछिये कि इनमें से भी एक को इन्होंने सजा दी है? या इनकी गतिविधियां रुकवाईं? उल्टा आप ये देखेंगे कि लश्करे-ए-तैयबा को तथाकथित रूप से प्रतिबंधित करके उसी संस्था को जमात़–उद-दावा के नाम से सरकार से पता नही कितना करोड़ रुपया मिला था और दुनिया से उन्होंने जितना रुपया लिया था कश्मीर में आये भूकंप के बाद रिलीफ के नाम पर जमात-उद-दावा को दे दिया. जो सबसे खतरनाक संस्था आपके देश में है, उसी से सरकार काम करवा रही है तो कोई तालमेल तो जरूर है उनके बीच में. ये सब दिखाने की चीजें हैं. इसका एक निष्कर्ष निकलता है कि अगर दबाव कम नहीं हुआ तो मजबूरन ये कुछ करते रहेंगे, इनको करना पड़ेगा. लेकिन ये है अंग्रेजी में जिस तरह कहते हैं कि they are minimal satisfier, कम से कम जो कर सकते हैं वो करें, ज्यादा से ज्यादा नही करें. मजबूरन जितना कम से कम उनसे कराया जायेगा, उतना वो कर देंगे. जहाँ उनको जगह मिली, बहाना मिला, वो हट जायेंगे.
प्रश्न- पाकिस्तान के इस रवैये के बाद भारत विरोधी आतंकवादी संगठन पर किस तरह लगाम लगाई जा सकती हैं, या ये वैसे ही चलता रहेगा?
अजय साहनी- देखिये जब तक आप कहीं ना कहीं से लग़ाम लेके आयेंगे, तब लगायेंगे ना, आपके हाथ में कोई औजार तो है ही नहीं लग़ाम लगाने का. ये चीखते रहना कि हम उनके ऊपर बमबारी कर देंगे, हम जंग कर देंगे, ये सब तो होने वाला नहीं हैं वो भी परमाणु (nuclear) देश हैं, आप भी परमाणु देश हैं, इतनी तो हिम्मत हमारी है नहीं. हिम्मत तो छोड़िये, क्षमता भी नही है। क्षमता की बात पहले आती हैं, हिम्मत बाद में आती हैं क्योंकि क्षमता के बगैर हिम्मत बेबकूफी़ होती है. अब एक ही रास्ता बचता है COVERT OPERATION (गुप्त राजनीतिक और असैनिक लड़ाई) का. वो इन नेताओं ने दशकों से खत्म करके रखी है, एजेंसियों को बिल्कुल कह दिया है कि आप कुछ नहीं करें, यह आपका काम नहीं हैं, आप यहाँ बैठ कर केवल सूचनाएं इकट्ठा करिए.
प्रश्न- ये जो बताया जाता हैं कि 1977 में रॉ (RAW) के पास इतनी क्षमता थी कि जुल्फिकार अली भुट्टो को जेल से निकालकर भारत तक का पहुचाने का plan उसने दिया था सरकार को. आज वहीं पर दाऊद रह रहा हैं, भारत के खिलाफ सबकुछ कर रहा हैं और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
अजय साहनी- आप जानते हैं कि 1977 से ही रॉ की सारी क्षमतायें खत्म कर दी गई। मोरारजी देसाई के जमाने में RAW की क्षमता को नेस्तनाबूत कर दिया गया. ये तभी से सिलसिला शुरू हुआ था और किसी सरकार ने इस सिलसिले को उल्टा मोड़ने की कोशिश नहीं की. किसी सरकार ने नहीं कहा कि भई बहुत हो गया, अब वापिस अपनी क्षमता बनाइये. बिना राजनीतिक अनुमति के कोई भी एजेंसी कुछ नहीं कर सकती.
प्रश्न- लेकिन राजनीतिक अनुमति क्यों नहीं मिलती जबकि हर आतंकवादी हमले के बाद राजनीतिज्ञ पाकिस्तान को सबक सिखाने की धमकी देते रहे.
अजय साहनी- वो सिर्फ हमारे नेता आपको बता सकते हैं. वो राजनीतिक अनुमति इसलिए नही है क्योंकि हमारे नेताओ में सुरक्षा की कोई समझ ही नही है. कोई दूरगामी सोच ही नही है, जो अपने देश में कार्यवाही करने की क्षमता नहीं रखते वो किसी और देश में कार्यवाही करने का क्या गुमान रखेंगे. उनको समझ ही नहीं है.
प्रश्न- तो आपको क्या लगता हैं क्या वाकई में नेताओ में क्षमता नही हैं, रक्षा संस्थानों में क्षमता हैं लेकिन क्षमता को बनाया नहीं गया?
अजय साहनी- देखिये आप संसाधन नही देंगे और आदेश नही देंगे तो सुरक्षा एजंसियां कुछ नही कर पायेगीं.
प्रश्न- तो आपको क्या लगता हैं ये जो आतंकवाद का हमला जिस ढंग से मुम्बई में हुआ और जो पहले भी होता रहा हैं ये आगे भी लगातार यूँ ही चलता रहेगा?अजय साहनी- जब तक इसका आप कुछ हल नहीं निकालेंगे तब तक चलता रहेगा, मुझे तो हैरत ये होती है कि और ऐसे हमलें क्यों नही होते, साल में दो चार ही क्यों होते हैं. जहाँ तक भारत का सुरक्षा तंत्र है, उसमें इनको रोकने की कोई खास चिन्ता नहीं है. अगर रोज ऐसे ही हादसा हो तब भी कुछ नहीं हो पायेगा। तो ये ही बात रह गई कि वो हम पर हमला नहीं करवा पा रहे हैं. उनमें इतनी क्षमता नही है, वरना यहाँ तो आये दिन हो, आप किस जगह रोक लेंगे, आप बताइये, आप मुम्बई में रोक नहीं सकते, आप दिल्ली में नहीं रोक सकते, हर जगह पर यह हो गया है.
प्रश्न- एक तरफ भारत और अमेरिका पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है और उसी दबाव में पाकिस्तान सरकार कार्रवाही भी कर रही हैं. लेकिन दूसरी तरफ जिस ढंग से पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने ज़रदारी सरकार के खिलाफ हमला शुरू कर दिया, ऐसी स्थिति में क्या लगता है कि पाकिस्तान का वजू़द खतरे में आ गया है और वो एक तरह से बिखरने के कगार पर है?
अजय साहनी- ये कोई नई चीज नही है, १९८०-१९९० के बीच कई रिपोर्ट ऐसी निकलीं थीं. ये २००१ के पहले की बात हैं ०९/११ के पहले की बात है, जो हालात आज पैदा हुऐ हैं उससे पहले की बात हैं. तकरीबन पूरी दुनिया में जितने भी इस चीज के अनुमान लगाये गये हैं, उनमें सबमें ये यही एक ही निष्कर्ष था कि पाकिस्तान जिस हाल में है उस हाल में नहीं रह सकता, वो तरक्की नहीं कर सकता, उसके अन्दरूनी विरोधाभास उसे एक आंतरिक एनार्की में ले जायेंगे और इसके टुकड़े हो जायेंगे. ये असलियत पाकिस्तान की पहले से ज़ाहिर थी और ये जो इसके रूझान हैं वो पिछले दस साल में, बारह साल में बढ़े हैं, घटे नहीं हैं. तो मेरे हिसाब से पाकिस्तान का कोई भविष्य नही है. सवाल ये हैं कि ये कब टूटेगा और किस तरह से टूटेगा और यही मैं बार- बार कहता हूँ कि ये देश तो बर्बाद है ही, दुनिया को अब ये सोचना चाहिये कि इस बर्बादी को किस दिशा में ले जाया जाये. पसंद यह नही है कि इसको आबाद कर दिया जाये. अमेरिका कोई दस-बीस बिलियन डॉलर इनको दे देगा तो ये सब ठीक हो जायेंगे, ये नहीं हो सकता, ये तो बर्बाद होंगे ही होंगे.
अब सवाल ये हैं कि इसकी बर्बादी किस दिशा में ली जायेगी. हमारी, अमेरिका की, या अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जो नीति है उसको देखना चाहिये कि अगर पाकिस्तान टूटता है तो वो किस तरह से टूटे. हमें यह देखना होगा कि वह तालिबान के हाथ में ना जाये. अगर आपको लगता है कि वर्तमान सरकार सही दिशा में नहीं जा रही है पूरा समर्थन हटा दीजिये, पाकिस्तान की आवाम में बाकी जो जमातें हैं, उनमें लोग ढूढिये जो पाकिस्तान को या पाकिस्तान के किसी भी हिस्से को सही दिशा दे सकें, बलूचिस्तान को सही दिशा दे सकें, बिल्कुल सही दिशा दे सकें. नार्थ वेस्ट फ्रण्टियर को नई दिशा दे सके, पंजाब को छोड़ दीजिये.प्रश्न- यानि की ले देके एक पूरा निष्कर्ष ये निकल रहा है कि भारत के सामने एकमात्र विकल्प है कि हम अपनी agencies को मजबूत करें और पाकिस्तान में Covert Operation शुरू करें?
अजय साहनी- बेशक. और कोवर्ट आपरेशन से मेरा आशय है कि यह आपरेशन हर मायने में हो. ऐसे अभियान हिंसक नहीं होते. ये राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तीनों ही स्तरों पर चलाए जाते हैं. ये लंबे समय के आपरेशन होते हैं और इनका दायरा विस्तृत होता है. लोग समझते हैं कि कोवर्ट आपरेशन का मतलब सिर्फ किसी को गुपचुप तरीके से ठिकाने लगा देना या मार देना. ऐसा बिल्कुल नहीं है.
प्रश्न- एक आखिरी सवाल कि इस पूरी स्थिती में जो दबाब बना रहे हैं पाकिस्तान के ऊपर, अब क्या लगता हैं कि कश्मीर में जो आतकवादी सक्रिय थे उसपे कहीं ना कहीं कुछ समय के लिए विराम लगा है?
अजय साहनी- हां, लेकिन अब आतंकवाद कश्मीर से निकलकर पूरे देश में फैल चुका है. यह सही है कि दबाव में पाकिस्तान ने कश्मीर में अपनी योजनाओं को थोड़ा ढीला किया और कश्मीरी भी आतंकवाद से तंग आ चुके थे जिसका नतीजा इस चुनाव में दिखाई दे रहा है. लेकिन यह भी सच है कि अब वे कश्मीर से निकलकर पूरे देश में फैल चुके हैं.
(अजय साहनी से बात पर आधारित)
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20090122
'मेरा बयान अखबार में जरूर छापना कि पाकिस्तान हमला करेगा तो हम झेल लेंगे'

किसी शिकार कथा को पढ़ कर शेर की भयानकता का अंदाला लगाने व शेर की मांद में रह कर हंसते खेलते जीवन व्यतीत करने वाले अनुभव में जमीन आसमान का अन्तर होता है। इस्लाम धर्म के कथित रहबरों द्वारा न्यूयार्क व वाशिंगटन से लेकर मुंबई तक में दिखाए गए दुस्साहस की चर्चा चाहे बंगाल के किसी अध्यापक, उत्तर प्रदेश के पनवाडी या बिहार के खेतिहार के लिए एक ही जैसा महत्व रखती हो पर भारत पाकिस्तान की सीमा पर बैठे व्यक्ति के लिए यह चर्चा उसके व उसके परिवार के भविष्य के साथ बावस्ता होती है। ये वो लोग हैं जो भारत-पाक संबंधों में सुधार की गुंजायश देख कर जश्र मानाते हैं। जबकि दोनों देशों में आती कटुता से इन्हें अपने भविष्य की जन्म कुंडली में घुसपैठ कर आए राहू जैसी स्थिति का अहसास होता है। जहां जंग की आशंका के चलते दुनिया भर के शेयर बाजार बुखार जैसे अनुभव से गुजर रहे हों वहीं अंतरराष्ट्री सीमा से मात्र पांच सौ गज की दूरी पर स्थित अपने खेत में हल चला रहे किसान को, ट्रैक्टर पर लगे टेप-रिकार्ड पे फुल वाल्युम पर जुगानी जा वड़ी कलकत्ते सुनते हुए उसका खिलंदड़ रूप देख कर आपको कैसा लगेगा? और यदि पत्रकार के तौर पर आप इन हालात व इस प्रकार के नजारे के गवाह रहे हों तो इस नजारे को देश के लोगों के समक्ष न रखना धोखेबाजी होगी।
रछपाल सिंह के साथ बैठे जोगिंद्र सिंह टियर्ड पटवारी हमारी बातचीत में दिलचस्पी लेते हैं पर यकायक वो हम पर बरस पड़ते हैं, ``बाउ जी, तोहाड़ी सरकार किद्दां दी है, फौजी मोर्चे पर दुश्मन के दांत खट्ठे कर देता है पर तुसी कुर्सी ते बैठ के ओह सारे इलाके वापस कर देंदे ओ जेहड़े फौजां ने अपनी जान ते खेल के जित्ते हुंदे नें।´´ (आपकी सरकार कैसी है। फौज जो दुश्मन के दात खट्ठे करके, अपनी जान को जोखिम में डालकर जंग में जिन इलाकों पर जीत दर्ज करती है आपकी सरकार उन्हें बातचीत के दौरान आराम से वापिस कर देती है।) असल में पटवारी साहिब ने मुझे सरकारी अधिकारी समझ लिया था। रछपाल उन्हें समझाते हैं कि ये तो पत्रकार हैं जो इन हालात में हम लोगों की सुध लेने आए हैं। तब यकायक जोगिंद्र सिंह खामोश हो जाते हैं। उन्हें इस बात पर खुशी है कि पत्रकारों ने इतनी दूरदराज बैठे उन लोगों की कोई खबरा-सार ली है। जोगिंद्र सिंह जब तेरह साल के थे तब बटवारे के कारण वे लाहौर से भारत आए थे। उन्होंने 1965 व 1971 की भारत पाक जंग को देखा व सहसूस किया है। वे अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं,``देश के सैनिकों की बहादुरी व देशभक्ति पर हमें कोई शक नहीं परन्तु नेता नपुंसक हैं। मेरा यह बयान अखबार में जरूर छापना कि यदि पाकिस्तान हमला करता है तो हम झेल लेंगे पर जो इलाका हमारी फौज जीत ले उसे वापिस नहीं किया जाना चाहिए।´´ इन्हीं के साथ बैठे फत्तूवाला गांव के राजेन्द्र सिंह नंबदार का अनुभव यह था कि 1971 की जंग में उनके गांव में पाकिस्तानियों ने हवाई हमले करके कुछ बम गिराए थे पर वो खेतों में ही गिरे थे जिसके चलते जान-माल की हानी नहीं हुई थी। वे कहते हैं कि उस जंग में भारतीय सेनाओं को गांव के लोगों ने दूध-चाय व दाल-फुल्के की कमी नहीं आने दी। गांव के उत्साही नौजवान तो फौज को चाय पिलाने के लिए मोर्चों तक चले जाते थे व फौजियों से कहते थे कि आप खा-पी लें, तब तक गोली हम चलाते हैं।
हालांकि बार्डर पर बसे सभी ग्रामीणों से बातचीत हो पाना संभव नहीं था पर उनके खेतों की स्थिति देख कर उनकी मनोभावनाओं का अंदाजा लगाना कोई मुश्किल नहीं था। इससे यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि सीमा पर बसे लोगों को पाकिस्तानी हमले का या तो खतरा नहीं या फिर सहम जैसी कोई बात नहीं। गांव के बाहर व अंतरराष्ट्रीय सीमा के करीब चार सौ गज की दूरी पर बने बड़े से अहाते में रखीं आधुनिक कुर्सियों पर बैठ कर अखबार पढ़ते हुए सरकार बगीचा सिंह से बातचीत का दौर भी काफी उत्साह वर्धक रहा। वे इस अत्यंत पिछते इलाके के निवासी होने के बावजूद काफी अप-डेट दिखे। बातचीत का सिलसिला शुरू होते ही बड़ी जीवट मुस्कान के साथ उन्होंने विश्वास जताया कि पाकिस्तान भारत पर हमला नहीं करेगा। थोड़ा कुरेदने पर उनकी मुद्रा थोड़ी दार्शनिक हो गई। उन्होंने कहा,``जंग का नाम ही महापाप जैसा है, पर दुनिया के हालात देखते हुए ऐसा लगता है कि नाम लेने या न लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता। हां यह दुआ है कि जंग न लगे। पर इसका यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि हमें कोई खौफ है। मेरी तो यह मान्यता है कि पाकिस्तान हम पर हमले जैसी मूर्खता नहीं करेगा क्योंकि उसके पास है ही क्या? वर्ष 95 में जब मैं पाकिस्तान गया था तब बड़ा विचित्र अनुभव हुआ। जब मैने वहां के लोगों से बातचीत के दौरान बताया कि हमारे यहां एक खेत से इतना गेहूं व इतना चावल पैदा होता है तो उन लोगों का हैरानी से मुंह फटा रह गया था व उनकी टिप्पणी थी कि सरदारजी झूठ बोल रहे हैं। जब मैंने अपने पंजाब की भूमि पर खेती करने में सहायक यंत्रों (टयूबवैल,टैक्टर इत्यादि) की अनुमानित गिनती बताई तो वे हैरान रह गए कि खेती के क्षेत्र में भारतीय पंजाब ने इतनी तरक्की कैसे कर ली,।´´ बगीचा सिंह ताजा प्रकरण के चलते दुनिया भर में मंडरा रहे तनाव के बादलों पर भी काफी ठोस राय रखते हैं। उनका मानना है कि जुल्म करने वाले को सजा न देना भी जुल्म करने वाले की मदद करने जैसा है। मुठ्ठी भर लोगों को धर्म के नाम पर दुनिया को मुसीबत में डालने का कोई हक नहीं है।
उस गांव से हमारा अगला पड़ाव भारत सीमा से महज सवा किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव डि्डा के बाहर स्थित खेत रहे। मात्र 22-23 वर्षीय वो चुलबुली सी डा. रवि हमें पूरे उत्साह के साथ अपने तीन में से एक एकड़ भूमि के खेत में उगी जड़ी बूटियों की किस्में बताने में मशगूल है। वो धारा-प्रवाह बोलती हुई हमें समझा रही है कि इन वनस्पतियों में कौन-कौन सी बीमारियों

इसी प्रकार फाजिल्का सैक्टर में एक गांव है दिलावर भैणी। उस गांव की स्थिति ऐसी है जैसे किसी ने एक चौरस डिब्बा उठा कर बार्डर की सीधी लाईन के उस पार रख कर केवल आगे वाला हिस्सा भारत की तरफ रखा हो। इस गांव के तीनों तरफ पाकिस्तान है, फैंसिंग से घिरे हुए इस गांव का जो प्रवेश द्ववार है वहां सतलुज नदी बहती है जिस पर टैंपरेरी पुल सा बना हुआ है। प्रवेश द्ववार पर बीएसएफ की पोस्ट है। इस समय उस गांव में बाहरी व्यक्ति के जाने पर पाबंदी है। आखिरकार तीन तरफ से पाकिस्तान से घिरे उस गांव के लोग बार्डर पर फौजों का जमावड़ा देख कर कैसा महसूस करते हैं। हमने इस बार दिलावर भैणी के बाहर टैप लगाया ताकि आने जाने वाले लोगों के विचार व उसके हावभाव से उनकी मानसिक स्थिति का अंदाजा लगा सकें। ज्यादातर लोग तो अपनी रोजाना की समस्याओं जैसी बातों में मश्गूल दिखे। दिलावर भैणी के निवासी चंदा सिंह ने बताया कि गांव में लोग पूरी तरह से चढ़दी कला में है। पाकिस्तानी फौज के बंकर तो हमारे गांव से ही दिखते हैं जहां गतिविधियां काफी तेज हैं पर हमारी तरफ से बीएसएफ की तैनाती के चलते हमें कोई खतरा नहीं लगता।
(www.visfot.com से साभार)
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कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.